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मैं सूर्य के गर्भ में पला हूँ

मैं  सूर्य  के

गर्भ में पला हूँ

मैं अपने ही

अंतर्द्वंदों की आग में

तिल -तिल जला हूँ

अनगिनत दी हैं

अग्नि परीक्षायें

और उन क्रूर परीक्षाओं में

हरदम  खरा उतरा हूँ

आसमां से मैं

धरती पर गिरा हूँ 

अपने आप से ही

मैं निरंतर लड़ा हूँ

मैंने प्रसन्नचित्

मर्मान्तक पीड़ा के

पहाड़ को झेला है

हसं हसं कर

आग से खेला है

तपस्वी सा तपा हूँ

नहाया हूँ डूबकर

समुद्र में,मैं

तब अडिग चट्टान सा खड़ा हूँ

अपने ही विस्तार में

मैंने बंधा है काल को

साधा है विष विकराल को 

विष पीया है

अमृत बांटा है 

मनुष्यता के प्यार में

तुम्हें बचाने, मैं

नीलकंठ बन उतरा हूँ !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 27, 2014 at 9:56am

बहुत बहुत आभार सोमेश भाई आपका , आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 27, 2014 at 9:54am

आदरणीया प्रतिभा त्रिपाठी जी ,आपके  अत्यंत  उत्साहवर्धक शब्दों ,आपकी रचना पर प्रतिक्रिया ने ,रचना का मान  बढ़ा दिया , आपका हार्दिक धन्यवाद  !सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 26, 2014 at 12:26pm

आदरणीय मिथिलेश जी ,रचना पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया से मन अभिभूत हो उठा , आपका पुनः आभार !

Comment by somesh kumar on December 25, 2014 at 11:06pm

मैंने बंधा है काल को

साधा है विष विकराल को 

विष पीया है

अमृत बांटा है 

मनुष्यता के प्यार में

तुम्हें बचाने, मैं

नीलकंठ बन उतरा हूँ !!

 बेहद गहन विचार हैं इन पंक्तियों में इसका राजनैतिक अर्थ भी हो सकता है और अध्यात्मिक भी ,दोनों ही अर्थों में सुंदर भावपूर्ण रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 7:03pm
आदरणीय हरि प्रकाश जी आप ने कविता की पहली पंक्ति ही इतनी विशाल कैनवस पर अंकित है कि पढ़कर मुग्ध हो गया हूँ। आज दूसरी बार जब कविता का पाठन किया तो बस फिर बार बार पढता रहा। क्या खूब लिखा है- मैं सूर्य के गर्भ में पला हूँ। आपको दिल से ढेर सारी बधाई।
Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 6:47pm

आदरणीय योगराज सर आपका  भी हार्दिक आभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 6:42pm

 आदरणीय  इं.गणेश जी "बागी जी ,रचना पर आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह बढ़ा देती है ,आपका हार्दिक धन्यवाद ! सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 6:37pm

आदरणीय डॉक्टर  गोपाल नारायण सर ,रचना आपको पसंद आयी ,हार्दिक आभार आपका ! सादर प्रणाम !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 6:35pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी ! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2014 at 5:01pm

बहुत बढ़िया, अच्छी अभिव्यक्ति पर बधाई आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी .

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