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2122 1122 22

खुद से यूँ आप वफ़ा कर चलिये

गाह सच को न छुपा कर चलिये

 

मैं इबादत में करूँ सजदे आप

दैर पर शीश नवा कर चलिये

 

दिल में भर जाये सड़न ही न कहीं

नफ़रतें दिल से हटा कर चलिये

 

चलिये महका के ज़माने भर को

प्यार का फूल खिला कर चलिये

 

कीजिये अम्न की कोशिश यों भी

हक़ में इंसाँ के दुआ कर चलिये

 

क्यूँ रहे हुस्न ही पर्दे में जनाब

आप भी नज़रें झुका कर चलिये

 

अब तलक ज़ख़्म कहीं बाकी है

बेवजह दिल न दुखा कर चलिये

 

बुझ रहा है तो इसे बुझने दें

यूँ शरर को न हवा कर चलिये

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:40pm

आदरणीय सौरभ सर  शेर की सराहना के लिये आपका आभार,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:38pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:37pm

आदरणीय बैद्यनाथ जी आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:36pm

आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:36pm

आदरणीय विजय निकोर सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:35pm

आदरणीया राजेश दीदी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:34pm

आदरणीय विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:34pm

आदरणीय निलेश भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:33pm

आदरणीय गुमनाम जी बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 31, 2014 at 10:32pm

आदरणीय गुमनाम जी बहुत बहुत शुक्रिया

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