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भाईचारा बढ़े संग हम सब त्‍योहार मनायें।

इक ही घर परिवार शहर के हैं सबको अपनायें।

क्‍यूँ आतंक घृणा बर्बरता गली गली फैली है।

क्‍यों बरपाती कहर फज़ा यह तो यहाँ बढ़ी पली है।

पैठी हुईं जड़ें गहरी संस्‍कृति की युगों युगों से,

आयें कभी भी जलजले यह कभी नहीं बदली है।

भूले भटके मिलें राह में, उनको राह बतायें।

भाईचारा बढ़े---------------

 

दामन ना छूटे सच का ना लालच लूटे घर को।

हिंसा मज़हब के दम जेहादी बन शहर शहर को।

शह देते जो अमन वफ़ा को का‍फ़ि‍र हैं दुश्‍मन हैं,

गले लगाना और बचाना है हर दीद-ए-तर को।

बात तभी है घर घर को हम एक मिसाल बनायें।

भाई चारा बढ़े-----------------

राखी होली दिवाली, मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे।

मिसल सभी की बेमिसाल, मंजि़ल इक रस्‍ते सारे।

देते हैं सब सीख एक ईश्‍वर है एक खुदा है,

हम जमीन पर सारे इक आकाश तले लख तारे।

सच्‍चाई की राह चलें जीवन रोशन कर जायें।

भाई चारा बढ़े-----------------

*मौलिक एवं अप्रकाशित*

 

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Comment

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Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 7, 2014 at 8:51pm

आभार आदरणीय भंडारीजी ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2014 at 5:53pm

आदरणीय गोपाल भाई , बहुत बढ़िया सन्देश दिया है आपने रचना के माध्यम से , बधाइयाँ |

कृपया ध्यान दे...

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