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मंच-दाँ रहनुमा

तुम हुए मंच-दाँ जब से मन निहाई हो गया

यों मगर खाली निहाई पीटने से क्या हुआ |

सोन-माटी के कबाड़े क्यों नजर आते नहीं

सिर्फ़ बातों की हथौड़ी से धरा सब रह गया |

           

तुम हुए रहनुमा मकसद घर से बाहर चल पड़े   

पर तुम्हारी रहबरी ने क्या-क्या जिल्लत ना दिया |

लूटने का हुनर दौलत की हवस बढ़ती गई  

आबरू पे भी निगाहें जीना मुश्किल कर दिया |

 

तुम सियासत के सदन से निकलकर बागी हुए

दर्द का मारा लगा हम सब के ख़ातिर आ गया |

तेंदुए की चाल लेकिन तुम छिपा पाए नहीं   

देखकर बस्ती का हर घर खौफ़ से सहम गया |

 

खूँ-पसीने की कमाई उजले कालिख में फँसी

हर फसल अच्छी रही पर हाथ कुछ भी ना मिला |

मंच से बोली लगाया बनके तुमने खेतिहर

चौधरी फिर खुद ही बन खलिहान सारा ले लिया |

 

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 -- संतलाल करुण 

Views: 702

Comment

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Comment by Santlal Karun on August 21, 2014 at 7:26pm

आदरणीय विजय मिश्र जी,

आप ने रचना में व्यक्त पीड़ा पर तदात्मक प्रतिक्रिया दी; हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on August 21, 2014 at 7:25pm

आदरणीय लड़ीवाला जी,

दिनकर के सन्दर्भ और कविता के मर्म की अनुभूतिपरक  प्रतिक्रिया के लिए हृदयपूर्वक आभार !

Comment by Santlal Karun on August 21, 2014 at 7:23pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,

आप के प्रशंसात्मक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on August 21, 2014 at 7:21pm

आदरणीया वेदिका जी,

श्लाघात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on August 21, 2014 at 7:19pm

आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी,

प्रशंसात्मक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on August 21, 2014 at 7:18pm

आदरणीय पवन कुमार जी,

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on August 21, 2014 at 7:17pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,

प्रशंसात्मक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on August 21, 2014 at 7:15pm

आदरणीया कल्पना वाजपेई जी,

प्रेरक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on August 21, 2014 at 7:13pm

आदरणीया मीना पाठक जी, 

प्रेरणात्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदयपूर्वक आभार !

Comment by विजय मिश्र on August 21, 2014 at 12:47pm
दो वर्गों में बंटे इस समाज की आंतरिक दुर्दशा पर एक सटीक रचना पढ़ने को मिली | करुणा ही करुणा दिखती है |आभार भाई संतलाल जी |

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