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डगर

वैसे तो मैं
हर डगर से पहुँच जाता हूँ
तेरे पास .
मगर यह
प्रेम डगर बहुत कठिन है.
तुम्ही आ जाओ न
ढलान से होकर.

डॉ. विजय प्रकाश शर्मा
(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 20, 2014 at 6:18pm

आ० सौरभ पाण्डेय जी,
मेरे छोटे- छोटे प्रयास को मान देने के लिए आपका बहुत- बहुत धन्यवाद सह आभार.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 20, 2014 at 6:15pm

आ० विजय निहोरे जी,
यह कविता आपको भाई, आपने दे दी बधाई,
बहुत- बहुत धन्यवाद सह आभार.

Comment by vijay nikore on June 20, 2014 at 7:24am

बहुत ही सुन्दर भाव हैं। बधाई, आदरणीय  विजय जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2014 at 11:43pm

आपकी छोटी किन्तु अत्यंत प्रखर रचनाओं का आस्वादन ले रहा हूँ.  भला लग रहा है.

सादर धन्यवाद आदरणीय

 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 19, 2014 at 1:52pm

डॉ, प्राची सिंह जी,रचना आपको पसंद आयी , प्रोत्साहन के लिए आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 19, 2014 at 12:26pm

बहुत मुलायम भावनाओं को मुखर किया है....

सही है कई बार सफ़र तय कर पाना संभव नहीं होता ...मन को कई कई कारण रोक लेते हैं बाँध लेते हैं..... तो मन ही मन प्रिय से ये निवेदन कि इस राह पर वो ही कुछ कदम बढ़ा लें..... खूबसूरत एहसास 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर आ० डॉ० विजय शर्मा जी 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 16, 2014 at 9:34pm

आदरणीया कल्पना रामानी जी ,
आपकी सराहना पाकर मेरे साथ-साथ मेरी कविता भी धन्य हो गई. कृपा बनाये रखें.

Comment by कल्पना रामानी on June 16, 2014 at 8:04pm

छोटी सी सुंदर कविता बहुत पसंद आई। आपको हार्दिक बधाई आदरणीय विजय जी

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 14, 2014 at 11:28am

आभार मीना जी , जीतेन्द्र जी -आपने हमारा मान बढ़ाया. स्नेह बनाय रखें.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 14, 2014 at 11:25am

सभी पाठको का आभार.

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