गजल अश्क
212 212 212 212
गीत उसके लिखे गुनगुनाता रहा
हाल दिल का सभी को बताता रहा
ये उदासी भरी जिन्दगी क्योंं मिली
सोच कर अश्क मैं तो बहाता रहा
हम को उसके शहर में मिली मौत थी
लाश अपने शहर में जलाता रहा
चाँद में दाग है चाँदनी में नही
बात दिल को यही मैं बताता रहा
प्यार से चल सके ना कदम दो कदम
जाम पी पी तुझे तब भुलाता रहा
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
Comment
आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीय डा गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीय gumnaam pithoragarhi जी
आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीया Sarita Bhatia जी
आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीयाMeena Pathak जी
आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीयाSarita Bhatia जी
आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
बहुत खूब सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर...............
बहुत खूब सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर...............
गहमरी जी
आपकी रचना केनिरंतर बढ़ते स्तर पर आपको बधाई i
क्या बात है ... बहुत खूब .. बधाई आप को | सादर
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