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याद तेरी आविनाशी!

याद तेरी आविनाशी!  

 आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी

 याद तेरी अविनाशी!

 मिलन तुम्हारा बारहमासी  

 कभी लगा ना उबासी

 यादें तव मन मंदिर जग गयी  

 अलखन जगे जिमि काशी

 आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी

 याद तेरी अविनाशी!

 संग तुम्हारा था मधुमासी

 मन ना छायी उदासी

 चाँद सितारों में जा बस गयी

 मधुर हँसी की उजासी 

 आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी

 याद तेरी अविनाशी!

 मेरी दुनिया प्रेम पियासी

 रसमयी बात विलासी    

 छंद गीत कविता में ढल गयी

 याद तेरी आविनाशी!  

            -सत्यनारायण सिंह

            मौलिक व अप्रकाशित

 

 

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Comment by Satyanarayan Singh on April 24, 2014 at 10:12pm

प्रोत्साहन एवं उत्साहवर्धन हेतु आपका ह्रदय से सादर आभार आदरणीया अलका जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 6:08pm

आदरनीय सत्यनारायण भाई , सुन्दर भाव पूर्ण विरह गीत रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 24, 2014 at 10:55am

अति सुंदर भावों से संजोयी रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय सत्यनारायण जी

Comment by Alka Gupta on April 23, 2014 at 6:59pm

वाह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह अति सुन्दर शब्द एवं भाव संयोजन .......हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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