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कलम (अन्नपूर्णा बाजपेई)

मूक नहीं है वो लिखते जाना ही उसकी जात है ,

तम की स्याही से वो लिखती नित्य नव प्रभात है ।  

 

उजियारा फैलाने को रोज नया सूरज वो लाती है ,

जो मूक हो जीते है उनकी जुबान वो बन जाती है ।  

 

पढ़ लिख कर सम्मान की अलख वो जगाती है ,

झूठे हो चाहे जितने पर सच्चाई की धार लगाती है ।

 

अज्ञानता के घोर तमस को समूल उखाड़ भगाती है,

होती जिसके हाथ कलम ज्ञान भंडार लगाती है॰ 

 

पैनी कितनी भी हो तलवारें पर भीत नहीं ये खाती है,

परचम  सच्चाई  का  नित्य  नया  लहराती  है।

 

टेकते  अँगूठों  को  मुड़ना  ये बतलाती  है,

अंगूठा टेको को अक्सर लिखना सिखलाती है ।

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 6, 2014 at 9:36pm

  बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति पर। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by savitamishra on March 6, 2014 at 7:10pm

खुबसुरत व्याख्या

Comment by annapurna bajpai on March 6, 2014 at 3:42pm

आ0 सरिता जी , आ0 माहेश्वरी कनेरी जी , आ0 कल्पना जी , आ0 कुशवाहा जी एवं जितेंद्र जी आप सबका हार्दिक आभार । आपको रचना पसंद आई मेरा सौभाग्य । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 5, 2014 at 11:49pm

कलम के महत्व को बहुत सुन्दरता से बयां करती रचना, बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2014 at 4:44pm

टेकते  अँगूठों  को  मुड़ना  ये बतलाती  है,

अंगूठा टेको को अक्सर लिखना सिखलाती है ।

बधाई आदरणीया जी सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 4, 2014 at 5:30pm

 bahut sundar anju di bahut bahut badhai ........

Comment by Maheshwari Kaneri on March 4, 2014 at 4:40pm

कलम के  की खुबसुरत व्याख्या  की आप ने..इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई...

Comment by Sarita Bhatia on March 4, 2014 at 3:36pm

वाह कलम के गुणों की खुबसुरत व्याख्या की है आपने 

Comment by annapurna bajpai on March 4, 2014 at 1:39pm

आपका हार्दिक आभार आ0 मीना दी , आ0 श्याम नारायण जी । 

Comment by Shyam Narain Verma on March 4, 2014 at 11:06am
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई...

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