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बचपन का गाँव

नीम की छांव

छोटा सा कोना

कच्चा सा आँगन

बहुत याद आता है ।

गाँव के मेले 

ढेरों झमेले

दोनें में चाट

बर्फ को गोला

बहुत याद आता है ।

बचपन की सखियाँ

डिब्बे में गुड़ियाँ

छोटा सा गुड्डा

उन से बतयाना

बहुत याद आता है ।

सावन के झूले

हाथों में मेंहदी

काँच की चूड़ी

निवौली की पायल

बहुत याद आते है ।

बाबा की डांटे

माता से बातें

भैया के झगड़े

कच्चे वो आम

बहुत याद आता है

कल्पना मिश्रा बाजपेई

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kalpna mishra bajpai on March 26, 2014 at 9:14pm

अदरणीय पाण्डेय सर शुक्रिया सादर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 12:12am

नोस्टेल्जिक करते हुए इस प्रयास हेतु शुभकामनाएँ.

Comment by kalpna mishra bajpai on March 1, 2014 at 8:19pm

आदरणीय श्री नीरज जी अदरणीया सरिता जी मेरी छोटी सी रचना को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार /सादर

Comment by बृजेश नीरज on February 28, 2014 at 10:39pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Sarita Bhatia on February 26, 2014 at 9:54am

जी आदरणीया कल्पना जी बचपन के दिन भला किसे भूलते हैं 

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