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ग़ज़ल- रंग हैं क्यों सात मत पूछो - पूनम शुक्ला

2122. 2122 2

कहनी क्या थी बात मत पूछो
कब ढ़लेगी रात मत पूछो

जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो

थाम कर तुम को चले थे हम
कब थमेगी रात मत पूछो

बैठ हँसते हर तरफ जाबिर
देश के हालात मत पूछो

देखना तासीर भी उनकी
आदमी की जात मत पूछो

जौफ़ ही है हर तरफ बरहम
रंग हैं क्यों सात मत पूछो

है यहाँ हर राह सरगश्ता
क्यों नहीं प्रभात मत पूछो

तासीर- गुण ,प्रभाव
जाबिर - अन्यायी,ज़ालिम
जौफ़ - खोखलापन
बरहम - कुपित
सरगश्ता - भटका हुआ

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Poonam Shukla on February 27, 2014 at 12:00pm
प्राची जी आप क्या कहना चाह रही हैं समझ नहीं आया ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 21, 2014 at 7:19pm

छोटी बह्र पर सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आ० पूनम जी 

जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो..........ये शेर बहुत पसंद आया 

मकते के शेर में "क्यों नहीं प्रभात मत पूछो" तक्तीअ दुबारा कर लें 

इस सुन्दर प्रस्तुति  के लिए बहुत बहुत बधाई 

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 16, 2014 at 9:57pm

सुन्दर .........................अति सुन्दर............ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 15, 2014 at 12:14pm

आदरणीया पूनम जी ..उर्दू के शब्दों के आत्मसात से लिखी गयी बेहतरीन ग़ज़ल ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2014 at 7:31am

आदरणीया पूनम जी , गज़ल बहुत सुन्दर कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by ram shiromani pathak on February 14, 2014 at 10:28pm

बहुत ही प्यारी ग़ज़ल आदरणीया हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Shyam Narain Verma on February 14, 2014 at 5:24pm
बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको । 
Comment by Meena Pathak on February 14, 2014 at 4:28pm

बहुत सुन्दर गज़ल .. बधाई पूनम जी 

Comment by नादिर ख़ान on February 14, 2014 at 3:44pm

जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो

थाम कर तुम को चले थे हम
कब थमेगी रात मत पूछो

आदरणीया पूनम जी कोमल शब्दों मे बहुत अच्छी  गज़ल कही अपने  .... डेरों बधाइयाँ।

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