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मिली हमें स्वतन्त्रता//गीत//कल्पना रामानी

  

मिली हमें स्वतन्त्रता, अनंत शीश दान से।

निशान तीन रंग का, तना रहे गुमान से।

 

प्रतीक रंग केसरी, जुनून, जोश, क्रांति का,

दिखा रहा सुमार्ग है, सफ़ेद विश्व शांति का।

रुको न चक्र बोलता सिखा रहा हमें हरा,

सुखी समृद्ध जीव हों, हरी भरी वसुंधरा।

 

करें प्रणाम साथियों, झुकाएँ शीश, मान से। 

निशान तीन रंग का, तना रहे गुमान से।  

 

सदा स्वदेशी बोलियाँ, सगर्व आप बोलिए।

गुलाम भाष्य-भाव से, जिये तो मीत, क्या जिये।

कठोरता से काट दें, विदेशियों के जाल को।

न आँधियाँ बुझा सकें, स्वतन्त्रता मशाल को।

 

कि हिन्द-पुत्र हिन्दी को, जुबाँ पे लाएँ शान से।

निशान तीन रंग का, तना रहे गुमान से।

 

हटाएँ शूल द्वेष के, बसें गुलों की बस्तियाँ।

विमोह, शोक, रोग की, रहें न शेष अस्थियाँ।

सचेतना, सुभावना, सुकामना  अभंग हो।

समेकता, विवेकता, उदारता का रंग हो।

 

बनी रहे मनुष्यता, सदैव प्रेम दान से।

निशान तीन रंग का तना रहे गुमान से।

 

शहीद तो चले गए, जिहाद रंग ओढ़ के।

कि जागिए मनीषियों, विलास रंग छोड़ के। 

कुनीतियाँ उखाड़के, विकास मंत्र को वरें।

सुनीति, भक्ति, शक्ति से, सजीव तंत्र को करें।

 

सुरक्ष देश आज हो, सशक्त संविधान से।

निशान तीन रंग का, तना रहे गुमान से।

वेब पर अप्रकाशित व मौलिक

मेरे नवगीत संग्रह "हौसलों के  पंख" में संग्रहीत

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Comment by कल्पना रामानी on February 1, 2014 at 10:57pm

आदरणीय सौरभ जी, मैं स्वयं भी यह स्वीकार कर चुकी हूँ कि कुछ स्थानों  पर समझौता किया है। जिस समय गीत लिखा गया उस समय मात्राओं की पूरी जानकारी नहीं रखती थी। यहाँ 'एँ'के लिए एक मात्रा ही ली है जो समूह में सही बताया गया था। और 'हिन्दी' शब्द का विकल्प नहीं मिला। बाकी मैंने अपनी क्षमता से बढ़कर ही मेहनत इस गीत पर की थी। आपका अनुमोदन पाकर मन बहुत हर्षित हुआ। हार्दिक धन्यवाद आपका/सादर


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Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 2:58am

पंचचामर छंद विधा में आबद्ध इस सुन्दर गीत के लिए हृदय से बधाई स्वीकारें, आदरणीया कल्पना जी. 

एक दो जगह शब्द और गठे हुए हो सकते थे. लेकिन इस प्रयास को सादर नमन ..

सादर

Comment by कल्पना रामानी on January 28, 2014 at 8:00pm

आदरणीय आशुतोष जी, गीत की इतनी प्रशंसा से मन बहुत हर्षित हुआ। यह वर्णिक छंद में बाँधा हुआ है। एक दो स्थानों पर आवश्यक शब्दों के साथ समझौता  किया है। आपका हृदय से आभार। मेरा नवगीत संग्रह "हौसलों के पंख" अक्तूबर 2013 में प्रकाशित हो चुका है। जिसका विमोचन लखनऊ में 23 नवंबर 2013 को पूर्णिमा जी के हाथों से सम्पन्न हुआ।

Comment by कल्पना रामानी on January 28, 2014 at 7:55pm

प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी। सादर

Comment by कल्पना रामानी on January 28, 2014 at 7:54pm

सादर धन्यवाद मीना जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 28, 2014 at 3:03pm

आदरणीया कल्पना जी ..सुंदर शब्द, उत्तम, भाव , ज्ञानो पयोगी, सार्थक सन्देश , अद्भुत गेयता , देशभक्ति के इस गीत को कई बार गुनगुनाया .. आपका कविता संग्रह कब प्रकाशित हो रहा है ...तहे दिल बधाई के साथ ..सादर 

Comment by Vindu Babu on January 27, 2014 at 10:04pm

बहुत ही अच्छा और व्यापक संदेश देता हुआसुंदर नवगीत प्रस्तुत किया है आपने आदरणीया।

ढेरों मंगल कामना के साथ हार्दिक बधाई।

सादर

Comment by Meena Pathak on January 27, 2014 at 10:03pm

प्रणाम दी आप को और आप की लेखनी को 

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