For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल से प्‍यार

रूह से प्‍यार

प्रतिक ताजमहल

सीता,सती,अनुसुईया

बाते किताबों की

आज का प्रेम तन

वासना, भूख

अंहकार,पुरूषार्थ का

अपमान सहे कैसे

खोजे सूनी राह

शांत गलीयाँ

लूटे अस्‍मत,

इज्‍जत तार तार

अबला देख रही  थी सपने

दिखा रही सपने

कर गुजरने की चाहत

सीखने सीखाने की चाहत

पर अब अंधकार में  कैद

लाख साथ जमाना

साथ में ताना

क्‍यों क्‍या कैसे

दिल को भेदते शब्‍द

मगर वो

आजाद शिकारी

तलाश नये शिकार की

जाल में फसे भी तो

जाल के जाल में

उलझ कर जीवन

बंद हवा में खुल के जीवन

वो अबला खुली हवा में

मौत की जीवन

आखिर क्‍यों

आखिर क्‍यों नहीं

मसलते हम भैरो को

क्‍यों नही छीनते

अधिकार  जीने का

अधिकार , रोटी का

समाजिक बहिष्‍कार

पूरे परिवार का

कुल खानदान का

सजा ऐसी रूह कॉप उठे

हमारी बहने सुरक्षित

ना हो दामिन का

दामन दागदार

बेटी कलंकित,

ना जीवन का अंत

उसे हो विश्‍वास रक्षा

अस्‍मत की मान की करेगें

हम आप और समाज

करे इंन्‍साफ है जो

देगें इंन्‍साफ जो नहीं

मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 535

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 10:19am

प्रयासरत रहें भाई। ...............शुभ शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 12:45am

आप अपनी रचना को पढिये और टंकण त्रुटियों को शुद्ध कर दीजिये.

शुभ-शुभ

Comment by sarika choudhary on January 14, 2014 at 1:28pm

बहुत सुन्दर.........

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 14, 2014 at 8:11am

बहुत सुंदर रचना आदरणीय अखंड जी, बधाई स्वीकारें

Comment by Meena Pathak on January 13, 2014 at 12:44pm

बहुत सुन्दर रचना आ० गहमरी जी , बधाई 

Comment by coontee mukerji on January 12, 2014 at 9:55pm

सीखने सीखाने की चाहत

पर अब अंधकार में  कैद

लाख साथ जमाना

साथ में ताना

क्‍यों क्‍या कैसे

दिल को भेदते शब्‍द.....शायद इंसान अपनी फितरत  कभी नहीं बदलेगा....आपने एक मज़लूम औरत की दुखती रग पर उँगली रखी है.सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service