For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1)

आपस  के  संवाद में,  कितने  ही  मंतव्य !
कुछ तो हैं संयत-सहज, अक्सर हैं वायव्य
अक्सर  हैं   वायव्य,   शब्द से  चोट करारी
वैचारिक  प्रतिकार,  अहं  ने  मति भी मारी
वाक्य-वाक्य में व्यंग्य, ढंग क्या हैं मानस के ?
हे ! मानव समुदाय, यही क्या सुख आपस के ?

 
 
2)
ऊँचा   उठता  है   धुआँ,   नीचे  जाती   धार
पर सचेत-मन व्यक्ति का, यथा उचित व्यवहार  
यथा  उचित   व्यवहार,  तभी  वह  संसारी  हो
’सीख - सिखाना’  कर्म   साधना  सुखकारी  हो
चर्चा,   नहीं   विवाद,   इसी  में  सार   समूचा
शिष्ट बुद्धि,  सद्भाव,   उठाते  जन  को  ऊँचा !

************************

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1303

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 5:07pm

भाई तपनजी, आपका सादर धन्यवाद.

यदि यह छंद-प्रयास किसी काबिल दिख रहा है तो यह आपकी सदाशयता ही है. हृदय की गहराइयों से मेरा धन्यवाद स्वीकार करें.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 5:07pm

आदरणीय राजेशभाई, आपको मेरे कहे में, थोड़ी ही सही, सार्थकता दिखी, यह मेरे प्रयास को आपसे मिला अनुमोदन ही है.

और, भाईजी, आपने तो रचना-प्रक्रिया के पर्दे को ही अचानक उठा दिया.. अचानक मानों यह उरियाँ हो गयी लग रही है....
हा हा हा हा..
आप मय, मयकदा, साकी आदि-आदि पढ़ते शाइर का ज़रूर मुँह सूँघ लिया करते होंगे.. हा हा हा.. :-)))))

जी अवश्य भाईजी, आप रचना को रचना के कथ्य और शिल्प के हिसाब ही देखें.
मैं अचानक नहीं, हाँ, कभी-कभी ही लिख पाता हूँ. यह मेरी मज़बूरी भी है और आदत भी.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 5:06pm

आदरणीय गिरिराजजी, आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा, इसके लिए मैं भी आपका आभारी हूँ.

आप सभी की रचनाओं और प्रस्तुतियों पर धीरे-धीरे पहुँचने का प्रयास कर रहा हूँ.
विश्वास है आप मेरी विवशता समझ रहे होंगे.
आपकी प्रतिक्रिया दोहे के लिए बहुत-बहुत बधाई.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 5:05pm

आदरणीय अशोकजी, आपका सादर धन्यवाद कि आपको मेरा छंद-प्रयास रुचिकर लगा.
आपकी सुगढ़ प्रतिक्रिया छंद के लिए सादर धन्यवाद और आपको बधाइयाँ.
आजकल बेतहाशा बढ़ गयी व्यस्तता के कारण रचनाकर्म कम ही हो पारहा है. कई रचनाओं पर मैं अभी पहुँचा ही नहीं हूँ.

इसका बहुत खेद है. पहुँच रहा एक-एक करके.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 5:04pm

आदरणीया, राजेश कुमारी जी, आपका सदा स्वागत है. धन्यवाद कि आपने मेरे कहे को इतना मान दिया.

आपकी उर्वर रचना-प्रक्रिया वस्तुतः हम सभी को चकित करती है. और ये भी कि बेतकल्लुफ़ी आपके गुणधर्म का महत्त्वपूर्ण भाग है. देखिये न, आपकी प्रतिक्रिया छंद में दोहे वाले भाग में दूसरा विषम चरण मात्रिकता के मामले में हिलडुल गया और मात्रा बह गयी है. गेयता खुनक रही है.. हा हा हा..  :-)))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 4:30pm

आदरणीय श्यामजी, बहुत-बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 4:27pm

भाई अरुण श्री, आपकी संवेदनापूरित टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 4:27pm

आदरणीया प्राचीजी, आपके मुखर अनुमोदन ने मेरे रचनाकर्म को मान दिया है. दोनों छंद सार्थक हुए हैं यह सुनना अच्छा भी लगा है.. :-))))

सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 4:27pm

भाई जितेन्द्रजी, बहुत-बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 4:26pm

भाई शिज्जूजी, आपकी मुखर और एक सकारात्मक टिप्प्णी के लिए मैं आपका तहेदिल से आभारी हूँ.
भाईजी, एक संवेदनशील हृदय पाठक ही इस तटस्थता और इतनी गंभीरता से कुछ निवेदन कर सकता है. प्रस्तुति के संदर्भ में आपकी इस टिप्पणी ने आपके प्रति मेरे मन में और सम्मान बढ़ाया है.
शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service