प्रेम करो प्रकृति द्वारा
सृजित जीवन से
तो ही जान सकोगे
जीवन के गर्भ में
छुपे अनगिनत रहस्यों को
प्रेम से खुलेंगे
जीवन के वो द्वार
जिनके लिए जन्मों जन्मों
से भटकते रहे तुम
जिनसे अब तक
अन्जान रहे तुम
प्रेम से होगी यह प्रकृति
तुम्हे समर्पित
खोल कर रख देगी
सारे राज तुम्हारे सामने
जैसे गिरा देती है प्रेयसी
परदे अपने प्रेमी के सामने ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज 'प्रेम '
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया किरण आर्या जी ।
भाई नीरज जी सर्वप्रथम इतनी अमूल्य जानकारी के लिए धन्यवाद। ……मेर प्रश्न यह था
प्रेम से होगी यह प्रकृति
तुम्हे समर्पित
खोल कर रख देगी
सारे राज तुम्हारे सामने
जैसे गिरा देती है प्रेयसी
परदे अपने प्रेमी के सामने । सादर
आदरणीय नीरज प्रेम भाई, बहुत सार्थक रचना की है आपने !!!!! प्रेम ही एक मात्र भाव है, बाक़ी भाव प्रेम की अनुपस्थिति मात्र है ! जिसकी समझ जड़ चेतन दोनो की बराबर है !!!!! इस रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!
सुन्दर अभिव्यक्ति
बधाई आदरणीय
सादर
बहुत ही सुन्दर प्रयास नीरज भाई बधाई आपको
सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति .......शुभं
आदरणीय पाठक जी आयुर्वेद का ही उदाहरण ले लेते हैं
एक से एक प्राकृतिक औषधियों के बारे में ऋषि लिखता है
ऐसा तो नही उसने साड़ी जड़ीबूटियां अपने पर प्रयोग कर कर के देखी होगी
ऐसा सोचना तो बिलकुल तर्कसंगत नही है आप किसी जंगल में जाकर
बिना जाने किसी जड़ी बूटी का प्रयोग तो अपने ऊपर कर नही लेंगे निश्चित ही
वो ऋषि जिया होगा इस प्रकृति के साथ सुनी होगी इनकी खामोशियों कि आवाज़
जैसे किसी जगदीश चन्द्र बसु ने महसूस की समझा होगा इस प्रकृति को जाना होगा
जैसे एक छोटे बच्चे से प्रेम से पूछो तो कुछ भी बता देता है पर डाँट के पूछो तो शायद
वो आपसे भी बड़ा जिद्दी निकले ऋषि ने सीखा होगा प्रेम पूर्ण होकर प्रकृति के साथ जीना ।
प्रेम से मिलता है परमात्मा प्रेम से मिलती है प्रकृति प्रेम से खुलते हैं उसके रहस्यों के द्वार
जैसे गिरा देती है प्रेयसी अपने परदे अपने प्रेमी के सामने बस ऐसे ही प्रकृति प्रेम में अविभूत
होकर अपने सारे राज खोल कर रख देती है जिन रहस्यों को जानकर कोई बेचैन सिद्धार्थ शांत बुद्ध
हो जाता है जिनको जान ने वाला कबीर काशी छोड़ कर मरने के लिए मगहर चला जाता है
जिनको जान ने वाला जीसस हँसते हँसते शूली चढ़ जाता है और प्रभु से कहता है इन्हे क्षमा करना
ये नही जानते कि ये क्या कर रहे हैं ।
बस इतना ही सादर ।
आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी
जीवन के साथ प्रकृति के साथ हमने सिर्फ जबरदस्ती की है
बलात्कार किये हैं हिंसा की है ये इसी का परिणाम है
कि हमारे जीवन में इतने दुःख इतनी चिंताएं और इतनी पीड़ाएं हैं
इसके कारण तलाशने चाहिए हमे
एक छोटा सा बीज उसे तोड़ कर देखो उसमें कुछ न मिलेगा
और अगर उसे प्रेम को समर्पण होने दो उसे मिटटी में डाल दो फिर
उसे मिटने का अवसर दो,देखो चमत्कार कितना कुछ छुपा है उसमे
शाखाएं पत्तियां फूल फल सुगंध पर ये सब प्रेम में समर्पित होकर मिले हैं
ये प्रेम कि महिमा है इंसान अपनी हस्ती मिटाता है तो खुदा हो जाता है
इस लिए महावीर ,बुद्ध , कबीर , नानक , कृष्ण, जीसस , मोहम्मद साहब ,दादू ,
बुल्लेशाह , उमर खय्याम आदि जैसे प्रेमियों को प्रकृति ऐसे समर्पित हो गयी
जैसे प्रेयसी अपने प्रेमी को समर्पित होती है , प्रकृति आपको समर्पित होना ही चाहती है
पर पहला समर्पण आपका होगा आपके अहंकार का होगा ये तो महसूस करने वाली बाते हैं
बहुत ज्यादा शब्दों में आपसे क्या कहूं ।
सादर
सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीय भाई जी //////
खोल कर रख देगी
सारे राज तुम्हारे सामने
जैसे गिरा देती है प्रेयसी
परदे अपने प्रेमी के सामने ।आदरणीय भाई जी समझ में नहीं आया। ......कृपा कर मार्गदर्शन करें भाई.....
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