जख़्म किसने दिया बता दूँ क्या ?
दिल में चाकू कहो घुमा दूं क्या ?
हुक़्म पे तेरे चलता हूं आका ,
ये वफ़ादारियाँ निभा दूँ क्या ?
देखता हूं जिसे मैं सपनों में,
उसकी तस्वीर भी दिखा दूँ क्या ?
आपकी राजनीति कहती है
बस्तियाँ आपकी जला दूं क्या ?
अब किसी काम ही नहीं आता,
आग संविधान में लगा दूँ क्या?
sube singh sujan
यह रचना मौलिक तथा अप्रकाशित है।
Comment
वीनस केसरी......ji bhai ji आपकी बात सही पाी गई है।।धन्यवाद
आदरणीय अच्छी ग़ज़ल कही है
आख़िरी शेर पर फिर से गौर फरमा लें .. सानी बेबहर हो रहा है
ajay sharma, ji namskar........aapka aabhar ....honsla afzai ke liye danywad....
bahut bahut khoob gazal kahi hai mahodaya
अरुन शर्मा 'अनन्त',,,जी , आपका शुक्रिया
आदरणीय सूबे सिंह जी खूबसूरत अशआर हुए हैं बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने दो अशआरों में तकाबुले रदीफ़ का दोष है जाँच लें. इस सुन्दर ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकारें.
गिरिराज भंडारी, जी नमस्कार....प्रतिक्रिया के लिये आपका आभार.
भाई आपका बेहद शुक्रिया दिल से, बसंत नेमा जी.......प्रतिक्रिया के लिये आपका आभार..
जितेन्द्र 'गीत'जी नमस्कार , आपकी तरफ से बधाई प्राप्त हुई जो कि दिल से स्वीकार है। आपका धन्यवाद जो हमें इस लायक समझा।
गीतिका 'वेदिका',बहर है 2 1 2 2 1 2 1 2 2 2 (112) भी कर सकते हैं...सबसे प्रमुखता से प्रचलित बहर है। आपका आभार प्रतिक्रिया के लिये
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