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ग़ज़ल - लोग हैं तैयार खुद की लाश ढोने के लिए

ख्वाब के मोती हकीकत में पिरोने के लिए।
लोग हैं तैयार खुद की लाश ढोने के लिए।

झोंपड़े में सो रहा मजदूर कितने चैन से,
है नहीं कुछ पास उसके क्योंकि खोने के लिए।

आसमां की वो खुली, लंबी उड़ानें छोड़कर,
क्यों तरसते हैं परिंदे कैद होने के लिए।

जिंदगी भर खून औरों का बहाते जो रहे,
जा रहे हैं तान सीना पाप धोने के लिए।

जगमगाते हैं दिखावे से शहर के सब मकान,
सादगी तो रह गई है मात्र कोने के लिए।

पुष्प सारे चल दिए रंगीन गमलों की तरफ,
रह गया उजड़ा चमन बदहाल रोने के लिए।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2013 at 6:27pm

हार्दिक आभार आपका आदरणीय निलेश जी...........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2013 at 6:26pm

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद भाई आशीष जी.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2013 at 6:26pm

हृदयतल से आपका आभार आदरणीय अरुण कुमार निगम सर

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2013 at 6:24pm

प्रोत्साहन हेतु आपका आभारी हूँ आदरणीय गिरिराज सर.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2013 at 6:23pm

आदरणीय अरुण अभिनव सर, आपका दिल से आभार........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2013 at 6:22pm

दिल से आभार आपका आदरणीय शिज्जू सर.........स्नेह बनाए रखें

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2013 at 6:21pm

सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद भाई वीनस जी

Comment by ram shiromani pathak on November 5, 2013 at 9:31am

आदरणीय कुमार भाई ,लाज़वाब गज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई …सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 4, 2013 at 11:52pm

जगमगाते हैं दिखावे से शहर के सब मकान,
सादगी तो रह गई है मात्र कोने के लिए।..

इस ग़ज़ल के सभी शेर अपने इंगित में सफल हैं..

बधाई

Comment by विजय मिश्र on November 4, 2013 at 5:10pm
अजीतेन्दूजि . निश्चित ही तथ्यपूर्ण बात कही आपने इस सुन्दर कविता के माध्यम से . बधाई

कृपया ध्यान दे...

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