वो कहते हैं
शब्द र्निजीव होते है,
बेजुबान होते है।
वो कहते है,
यह लेखनी से बने,
आकार भर है।
जुबान से निकली,
आवाज भर है।
ना इनकी पहचान है,
ना इनका अस्तिव।
मगर यारो शब्द तो शब्द हैं,
अक्षरों केा संगठित कर
खुद में समाहित कर,
वाक्य बना कर उसे
पहचान देते है।
और खुद गुमनामी के
अँधेरे में खो जाते है।
ये शब्द निस्वार्थ सेवा का
एक सच्चा उदाहरण है।
एक शब्द झकझोर देता है,
मानव मन केा।
लाख छुपा ले हम ,
अपनी चाहत,को
अपनी संवेदना को
अपने विचार को,
पहचान केा,
मगर सब बता देते हैं,
ये शब्द ।
अपनो और गैरो की,
पहचान बता देते है,
दिल का चैन,
मन की शांति देते है,
यादो को ताजा कर देते है,
ये शब्द।
अपना अस्तित्व,
हो, ना हेा
किसी की पहचान बन जाते है,
बैचन कर देते है।
आँखो में पानी भर देते है,
बीती बाते याद दिलाते दते है
दिल को तड्पा जाते है
सुख दुख में साथ निभाते है।
ये शब्द।
ये शब्द अपनी अखंड
तुम्हारी पहचान है,
ये अपने नही,
आपके लिये जीते है।
आपके सुख से सुखी
गम से गमगीन,
हो जाते है,
ये शब्द ।
अपना हर पल बलिदान कर
आपके लिये खो देते है
अपना अस्तिव
ये शब्द,
ये शब्द,अखंड ये शब्द।
मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी
Comment
सुंदर रचना के लिए बधाई आपको आ0 अखंड जी ।
शब्द पर सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई श्री अखंड भाई
शब्दों का सुंदर बखान करती हुई इस अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई आ0 अखंड भाई जी...
आदरणीय अखंड भाई , जीव से निकले शब्द कभी निर्जीव नही होते !!!! आपकी सुन्दर रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!
इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई///सादर
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