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वो कहते हैं

शब्‍द र्निजीव होते है,

बेजुबान होते है।

वो कहते है,

यह लेखनी से बने,

आकार भर है।

जुबान से निकली,

आवाज भर है।

ना इनकी पहचान है,

ना इनका अस्तिव।

मगर यारो शब्‍द तो शब्‍द हैं,

अक्षरों केा संगठित कर

खुद में समाहित कर,

वाक्‍य बना कर उसे

पहचान देते है।

और खुद गुमनामी के

अँधेरे में खो जाते है।

ये शब्‍द निस्वार्थ सेवा का

एक सच्‍चा उदाहरण है।

एक शब्‍द झकझोर देता है,

मानव मन केा।

लाख छुपा ले हम ,

अपनी चाहत,को

अपनी संवेदना को

अपने विचार को,

पहचान केा,

मगर सब बता देते हैं,

ये शब्‍द ।

अपनो और गैरो की,

पहचान बता देते है,

दिल का चैन,

मन की शांति देते है,

यादो को ताजा कर देते है,

ये शब्‍द।

अपना अस्तित्‍व,

हो, ना हेा

किसी की पहचान बन जाते है,

बैचन  कर देते है।

आँखो में पानी भर देते है,

बीती बाते याद दिलाते दते है

दिल को तड्पा जाते है

सुख दुख में साथ निभाते है।

ये शब्‍द।

ये शब्‍द अपनी अखंड

तुम्‍हारी पहचान है,

ये अपने नही,

आपके लिये जीते है।

आपके सुख से सुखी

गम से गमगीन,

हो जाते है,

ये शब्‍द ।

अपना हर पल बलिदान कर

आपके लिये खो देते है

अपना अस्तिव

ये शब्‍द,

ये शब्‍द,अखंड ये शब्‍द।

मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी  

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Comment by annapurna bajpai on October 30, 2013 at 6:41pm

सुंदर रचना के लिए बधाई आपको आ0 अखंड जी । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2013 at 10:26am

शब्द पर सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई श्री अखंड भाई 

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 10:07pm

शब्दों का सुंदर बखान करती हुई इस अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई आ0 अखंड भाई जी...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 29, 2013 at 5:10pm

आदरणीय अखंड भाई , जीव से निकले शब्द कभी निर्जीव नही होते !!!! आपकी सुन्दर रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by ram shiromani pathak on October 29, 2013 at 11:14am

 इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई///सादर 

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