१-मीठा ज़हर
आज फिर खाली हाथ लौटा घर को
मायूसी का जंगल उग आया है
चारों तरफ
फिर भी मै
हँस के पी जाता हूँ दर्द का मीठा ज़हर
२- एहसान
एक एहसान कर दो
जाते जाते
समेट कर ले जाओ अपनी यादें ।
आज जी भर कर सोना है मुझे
३-महान
सम्मान बेचकर भी
ह्रदय अब तक स्पंदित है
आप महान हो
४-तकिया
अब बहुत अच्छी नींद आती है मुझे
पता है क्यूँ?
दर्द को ही तकिया बना लिया मैंने
५-हँसी
तुम्हारे आने और जाने के बीच
बहुत कुछ गुजरता है मुझसे होकर
और एक गुप्त बात बताऊँ आपको
आप की हँसी को मैंने
किताब के पन्नों में दबा रखा हूँ
बस उसे ही उलटता पलटता रहता हूँ
६-देखा है मैंने
टूटी झाडू से
साफ़ करता रहा
सभ्य लोगों द्वारा की गयी गन्दगी
केवल!चंद सिक्कों के लिए
७-ऐसा न करो
दिल तेरा पत्थर का माना
मुझसे प्यार भी नहीं माना
मगर जाते -जाते
मेरे कपडे न उतार
*******************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ जी क्षणिका दर क्षणिका आपका अनुमोदन पाकर आपार हर्ष हुआ मुझे तथा आपके अमूल्य सुझाव के लिए हार्दिक आभार,,,,सादर
१.
आज फिर खाली हाथ लौटा घर को
मायूसी का जंगल उग आया है
चारों तरफ
फिर भी मै
हँस के पी जाता हूँ दर्द का मीठा ज़हर.. .
मायूसी के जंगल और दर्द के मीठे ज़हर का क्या तालमेल है, कुछ स्पष्ट नहीं हुआ. बुरा मत मानियेगा भाई, खाली हाथ घर लौटने और परिणाम स्वरूप आस-पास मायूसियों के जंगल के उग आने के सुन्दर बिम्ब के बरअक्स दर्द के मीठे ज़हर को पीना पैबन्द ही लगा है. विश्वास है, निहितार्थ समझेंगे आप.
२.
एक एहसान कर दो
जाते जाते
समेट कर ले जाओ अपनी यादें ।
आज जी भर कर सोना है मुझे
इस क्षणिका पर मैं जितना कहूँ कहता ही जाऊँगा. हर तरह से श्लाघनीय है यह प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें, भाई.
३.
सम्मान बेचकर भी
ह्रदय अब तक स्पंदित है
आप महान हो..
क्या कह गये, भाई राम शिरोमणिजी !
वैचारिक क्लिष्टता के सापेक्ष कितना सरल किन्तु कितना अद्भुत प्रयोग हुआ है. बार-बार बधाई !
४.
अब बहुत अच्छी नींद आती है मुझे
पता है क्यूँ?
दर्द को ही तकिया बना लिया मैंने
हम्म्म्म... . यह प्रस्तुति बताती है कि आपने बताने को बहुत कुछ रख रखा है अपनी किटी में. प्रतीक्षा रहेगी, भाई.
५.
तुम्हारे आने और जाने के बीच
बहुत कुछ गुजरता है मुझसे होकर
और एक गुप्त बात बताऊँ आपको
आप की हँसी को मैंने
किताब के पन्नों में दबा रखा हूँ
बस उसे ही उलटता पलटता रहता हूँ
उधेड़बुन और असमंजस सामने विविध रूपों में नाच रही है और आप ताल मिलाने को मुँह भी नहीं खोल पा रहे हैं ! बहुत खूब हैं आप ! तभी तो जिसे हृदयांगन में समस्त आत्मीयता के साथ बसा रखा है उसीके प्रति अति शिष्ट होते चले जा रहे हैं आप !.. हे ईश्वर.. !!
६.
टूटी झाडू से
साफ़ करता रहा
सभ्य लोगों द्वारा की गयी गन्दगी
केवल!चंद सिक्कों के लिए
आपकी बात बहुत कुछ कहना चाहती है जिसे बखूबी साधा जा सकता है.
बहरहाल, बधाई !
७.
दिल तेरा पत्थर का माना
मुझसे प्यार भी नहीं माना
मगर जाते -जाते
मेरे कपडे न उतार
धत !
आनन-फानन में वयस्क होने की छटपटाहट अक्सर उम्र के थ्रेशोल्ड पर के बच्चों में होती है और वहीं वे हास्यास्पद हो जाते हैं. आवश्यक था क्या इस कथ्य को सम्मिलित करना ? वैसे भी सात-सात क्षणिकायें कम नहीं होतीं.
लेकिन, सारी सैद्धांतिक बातें एक ओर, और व्यावहारिक बातें इस ओर..
बहुत ही सुगढ प्रयास हुआ है. सचेत होते और संख्या के पीछे न पड़ते तो यह पोस्ट संग्रहणीय होती.
शुभेच्छाएँ तथा शुभकामनाएँ
आपका अनुमोदन पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई ////// बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी। …सादर
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं प्रिय राम शिरोमणि जी
-महान
//सम्मान बेचकर भी
हृदय अब तक स्पंदित है
आप महान हो//...................बहुत खूब!
इस विधा में आपकी कलम बहुत बढ़िया चलती है
इस संवेदनशील प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
bahut bahut aabhar adarneeyaa vandana ji//saadar
सभी रचनाएं एक से बढकर एक ....हार्दिक बधाई आदरणीय
ह्रदय को स्पंदित करती क्षणिकाये प्रस्तुत किया है आपने आदरणीय बधाई
बहुत बहुत आभार भाई विशाल चर्चित जी///सादर
वैसे तो आपकी सभी क्षणिकायें अच्छी लगी... पर ये वाली खास हो गयी है....
/// अब बहुत अच्छी नींद आती है मुझे
पता है क्यूँ?
दर्द को ही तकिया बना लिया मैंने ///
हार्दिक बधाई भाई !!!!
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