"डॉ साहिब, हमें बेटी नहीं चाहिए. आप बहू का एबॉर्शन कर दीजिए."
"ठीक है, आप लोग कल शाम मेरे प्राइवेट क्लिनिक पर आ जाईए".
"कल नहीं डॉ साहिब, हम लोग अगले हफ्ते ही आ पाएंगे"
"अगले हफ्ते क्यों ?"
"क्योंकि अभी नवरात्रे चल रहे हैं "
(मौलिक एवँ अप्रकाशित्)
Comment
रचना पसंद करने के लिए सादर आभार आदरणीय विजय निकोर जी
रचना पसंद करने के लिए सादर आभार सचिन देव जी
सादर आभार अग्रज लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी
दिल से धन्यवाद कहता हूँ आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
लघुकथा के मर्म तक पहुँचने हेतु सादर आभार आद० डी पी माथुर जी .
उफ़ .... भारतीय जनमानस दर्शन और रहस्यवाद में जितना ही उन्नत है सामजिक और धार्मिक कर्मकांड में उतना ही उल्टा .. आदरणीय योगराज सर आपकी लघु कथा इस दोगली मानसिकता की तस्वीर को चंद शब्दों में बिना किसी पात्र के नाम कितनी खूबसूरती से कह जाती है ... जितनी भी तारीफ की जाए कम है ..
ह्रदयतल से आपको बधाई आदरणीय सर
आदरणीय योगराज जी, सुन्दर कथा.
लड़कियाँ केवल तस्वीरों में ही पसन्द आती हैं. घरों में हो तो परेशानी और बाहर हो तो दूसरों को परेशानी...बहुत बहुत बधाई...
सादर.
आदरणीय सर
पाखंडी दोहरी मानसिकता के लोगों की सोच की सताहीयता और घृष्टता को दर्शाती सुन्दर सार्थक संदेशपरक लघुकथा.
इस कसी हुई लघुकथा पर हार्दिक बधाई
सादर.
श्री योगराज जी,
सादर चरण वंदना ।
बेहद सटीक और कसे शब्दों से आपने समाज के दोहरे चरित्र का चित्रण किया है। जैसे एकदम से कोई जोरदार पटाखा फूटता है परन्तु उसकी सन्न-सन्न बहुत देर कानों में गूंजती रहती है, यह आपकी लघुकथाओं की विशेष विशेषता होती है। लघुकथा होनी भी ऐसी ही चाहिए। आप बहुत अल्प शब्दों में अपनी पूरी बात कह जाते हैं । भविष्य में भी आप अपनी कृतियों से साहित्य जगत को सराबोर करते रहेंगें इसी दुआ से आपको हृदय से शुभकामनाएं । आपकी और रचनाओं का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
आदरणीय गुरुदेव, आपकी लघुकथायें हम लोगो के लिए शो रूम में रखे नमूनों की भाति होती है, कम शब्दों में कैसे उन बातों को आप समेटते हैं जिन्हें लिखने के लिए कई पन्नों की आवश्यकता हो ।
अभिभूत हूँ इस लघुकथा को पढ़कर, बहुत बहुत बधाई आदरणीय ।
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