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जिंदगी तू ही बता जुस्तजू क्या है(ग़ज़ल ) 'राज'

2 1 2 2      2 1 2 2       2 1 2 2    2

"रमल मुसम्मन महजूफ"

.

जिंदगी तू ही बता दे जुस्तजू क्या है

इक निवाले के सिवा अब आर्ज़ू क्या है

 

ख़ास जोरोजर समझते हैं जहाँ  खालिस

या खुदा  उनके लिए इक  आबरू क्या है

 

नफ़रतों का जो जहर यूँ बारहा पीते

अम्न क्या है और उनकी  गुफ़्तगू  क्या है

 

फितरतें ताने जनी ही है सदा जिनकी

 बाद क्या उनकी नजर में रूबरू क्या है 

 

कीमते फ़न की नजर में ही नहीं जिनकी 

गीत या उनके लिए ऐ नज्म तू क्या है 

 

जो  नहीं  रखते अक़ीदत या अदब दिल में 

वो समझते ही नहीं यारब  गुरु क्या है

 

टीसते दिल से  टपकता तो  बहुत देखा

जो न टपका सरहदों पे वो लहू क्या है 

 

लाख सागर हैं यहाँ ऐ "राज" पीने को

पर जिसे लब छू न पायें वो  सबू क्या है

**********************************

जोर ओ जर =शक्ति और धन

 फ़न =कला

बारहा =हमेशा , अनेक बार ,बहुदा

ख़ालिस =केवल

सबू =मदिरा का मटका

सागर =पैमाने

अकीदत =श्रद्धा,आस्था

अदब =तहजीब 

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2013 at 10:19am

आदरणीय वीनस जी मतले की त्रुटी मैं समझ गई इसको सोच कर दुरुस्त करती हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2013 at 10:09am

अभिनव अरुण जी आप जो कह रहे हैं वो सच है किन्तु क्या कुछ नया सीखना गलत है लोग पहले दोहे सीखते हैं ,फिर सवैया भी सीखने की चेष्टा करते हैं ,बिना सीखे फन कहाँ से आएगा ,सौभाग्य से हमारे बीच एक ग़ज़ल के विद्द्वान हैं वीनस जी उनको ये कष्ट तो दे ही सकते हैं न ? हाँ क्लिष्ट शब्दों का कम प्रयोग हो वो मैं मानती हूँ आपकी बात सही है ,इसलिए इस बार  इतने क्लिष्ट शब्द नहीं लिए 

फिर अर्थ भी लिख दिया है |आपका बहुत बहुत आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2013 at 10:02am

आदरणीय वीनस जी अभी बहुत है ग़ज़ल की पेचीदगियां सीखने के लिए आप की ग़ज़ल पर उपस्थिति मुझे बहुत सुकून दे रही है ,मतले की त्रुटी को आप और भी स्पष्ट कर दें तो मैं सुधार करूँ ,क्या ईतादोष है ? या कुछ और ?,मेरे साथ औरों को भी ज्ञान मिले,रही बात

आपने कहा है ---

कई अल्फाज़ ऐसे बंधे गए हैं जो अरूज़ इ हवाले से किसी एतबार से सही नहीं ठहरते 
किसी सूरत में इस तरह नहीं बाँधा जा सकता है जैसे आपने बाँध लिया है ....
जैसे - 
जोर ओ जर

कद्र-ओ- फ़न
घुंघरू

जख्म -ए -दिल-----वास्तव में कुछ पुराने ग़ज़ल करों की ग़ज़लों में इस तरह शब्द को विच्छेद कर दिखाया गया था जिससे मैंने सोचा शायद यह जरूरी है ,आपके कहने का मतलब क्या यही है की जैसे इसको लिखना चाहिए था जख्मेदिल ?कृपया स्पष्ट त  करें तो मेरे लिए आसान होगा ,वीनस जी इस ग़ज़ल पर आप थोडा और समय दें दें तो मैं आपकी शुक्रगुजार  होऊँगी ,इसको किस तरह से दुरुस्त कर सकती हूँ ?प्लीज हेल्प मी.  

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2013 at 9:50am

सलीम शेख जी ग़ज़ल पसंद करने का बहुत- बहुत शुक्रिया 

Comment by Abhinav Arun on September 26, 2013 at 5:04am

आ. राजेश जी ...हम नयी भाषा ..नए गढ़ाव क्यों ढूंढें ..परेशान हों ..जिस बोल बनाव में रोज्मरा  की बात होती है उसी में ग़ज़ल कहें  यकीनन उसमे अगर हम हैं हमारा दिल है तो फन भी होगा और सफलता भी मिलेगी !!

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 4:03am

आदरणीया मतला में काफियाबंदिश को स्पष्ट कर दें अथवा हिन्दुस्तानी ज़बान के अनुसार आगे के कवाफी सवालों के घेरे में आ जायेंगे

एक बेहद पेचीदा बहर को चुन कर उसमें कठिन जमीन को बाँध देना कभी कभी ग़ज़ल को बाँध कर रख देता है ...
अगर आपने एक दीर्घ मात्रा बढ़ा ली होती तो बहुत कुछ सध जाता

जिंदगी तू ही बता जुस्तजू क्या है

इक निवाले के सिवा आरजू क्या है

जिंदगी तू ही बता दे जुस्तजू क्या है

इक निवाले के सिवा अब आरजू क्या है

उर्दू के फसील अल्फाज से सजी इस ग़ज़ल में राइज अल्फाज़ को गलत तवज़्ज़ुन के साथ पेश करने के आपके फैसले पर नज़रे सानी फरमाने की इल्तिजा है
कई अल्फाज़ ऐसे बंधे गए हैं जो अरूज़ इ हवाले से किसी एतबार से सही नहीं ठहरते
किसी सूरत में इस तरह नहीं बाँधा जा सकता है जैसे आपने बाँध लिया है ....
जैसे -
जोर ओ जर

कद्र-ओ- फ़न
घुंघरू

जख्म -ए -दिल

Comment by saalim sheikh on September 26, 2013 at 1:43am
जख्म -ए -दिल से टपकता बहुत देखा
जो न टपका जंग में वो लहू क्या है
wahh wahh wahh!
Behad khubsurat sher,lajawab talmeeh! Bht bht badhai swikaren

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2013 at 9:02pm

राज लाली शर्मा जी आपको ग़ज़ल पसंद आई लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2013 at 9:00pm

चन्द्र शेखर पाण्डेय जी ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभारी हूँ.

Comment by राज लाली बटाला on September 25, 2013 at 8:38pm

जिंदगी तू ही बता जुस्तजू क्या है

इक निवाले के सिवा आरजू क्या है

 !! WAH kamaal kr di aapne is mtle ke sath !!

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,wah!

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