For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनुभूति

 

( जीवन साथी नीरा जी को सस्नेह समर्पित )

 

अनंत्य सुखमय सौम्य संदेश लिए

भावमय भोर है ओढ़े छवि तुम्हारी,

पल-पल झंकृत, पथ-पथ ज्योतित

आनंदमय  नाममात्र से तुम्हारे...

औ, अरुणित उत्कर्षक उष्मा !

संगिनी सुखमय प्राणदायक..!

 

प्रत्येक फूल के ओंठों पर

विकसित हँसी तुम्हारी,

स्नेहमय उन्माद नितांत

सोच तुम्हारी रंग देती है

स्वच्छंद फूलों के गालों को

गालों के गुलाल से तुम्हारे

 

दिन ढला, संध्या हुई गंभीर

मुंद-मुंद गईं अब रात की पलकें

तुम्हारी अंजित आँखों के झरोखों में,

जाने क्यूँ तुम कमरे के कोने में खड़ी

अँधेरे की कितनी परतों को ठेलती

डरी-डरी हो ढलती साँसो को सुनती

 

इतनी अपनी-सी रहती हो खयालों में

फिर क्यूँ खो देता हूँ तुमको सवालों में

सोचते-सोचते ख़यालों की खनकार में,

साँसे भी हैं संजीवित स्नेह से तुम्हारे,

फिर सपनों की परिणति से भयभीत

क्यूँ सहम जाते हैं मेरे भाव मनोतीत?

 

                 -------

                                           -- विजय निकोर

 

(मौलिक व अप्रकाषित)    

 

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on October 19, 2013 at 4:13pm

//प्रतीक को कितनी विह्वलता से आपने शब्द दिये हैं.

मानों, शब्दों के प्राण ले कर साकार हुआ चाहता है प्रयुक्त बिम्ब//

इस विभूषित प्रतिक्रिया को पढ़कर मन बहुत आनन्दित हुआ।

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ भाई ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on October 19, 2013 at 4:09pm

//लगता है इस समय आपकी रचनात्मकता बिल्कुल चरम पर है,

इतने गहन विषयों पर आलेख फिर... रचनाओं में इतना भावोत्कर्ष!//

 

इतनी सराहना से मुझको मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया वंदना जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on October 19, 2013 at 4:07pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया मीना जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on October 3, 2013 at 5:38pm

//प्रेम रस में भाव विहोर हो अपने जीवन साथी को समर्पित सुन्दर रचना//

रचना के भाव का अनुमोदन करने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 1, 2013 at 4:24pm

दिन ढला, संध्या हुई गंभीर

मुंद-मुंद गईं अब रात की पलकें

तुम्हारी अंजित आँखों के झरोखों में,

जाने क्यूँ तुम कमरे के कोने में खड़ी

अँधेरे की कितनी परतों को ठेलती

डरी-डरी हो

प्रतीक को कितनी विह्वलता से आपने शब्द दिये हैं. मानों, शब्दों के प्राण ले कर साकार हुआ चाहता है प्रयुक्त बिम्ब. बहुत-बहुत बधाई इस भाव-रचना के लिए.

सादर

Comment by vijay nikore on October 1, 2013 at 10:48am

//प्रेम रस में भीगी प्रत्येक पंक्ति हृदयस्पर्श कर रही है ....

अथाह प्रेम को समर्पित सुकोमल सुन्दर भाव भरी//

आपके इन उदार शब्दों ने मेरा मनोबल बढ़ाया है...

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय अरून शर्मा जी।

 

आशा है स्नेह बना रहेगा।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 30, 2013 at 7:02pm

आदरणीया प्रियंका जी:

 

इतनी मधुर प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक आभार।

आशा है आपका सहयोग मिलता रहेगा।

 

सादर,

विजय

Comment by Meena Pathak on September 25, 2013 at 6:54pm

प्रणाम आदरणीय ..... रचना हेतु सादर बधाई स्वीकारें 

Comment by Vindu Babu on September 25, 2013 at 4:57pm
क्या बात है आदरणीय!
रचना बहुत अच्छी लगी।
लगता है इस समय आपकी रचनात्मकता(creativity) बिल्कुल चरम पर है,इतने गहन विषयों पर आलेख फिर... रचनाओं में इतना भावोत्कर्ष!
आपकी चेतन्यता को प्रणाम है।
सादर
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 25, 2013 at 4:51pm

प्रेम रस में भाव विहोर हो अपने जीवन साथी को समर्पित सुन्दर रचना में प्रदशित स्नेह भाव के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय 

श्री विजय निकोरे जी | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ग़ज़ल ~2122 1122 1122 22/112 तोड़ कर दर्द की दीवार वो बाहर निकला  दिल-ए-मुज़्तर से मिरे एक…"
17 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service