For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - गांधियों के रूप में ढलते गए

बह्र -- रमल मुसद्दस महजूफ
२१२२, २१२२, २१२
हम चले थे आस में चलते गए
और वो सब हाथ ही मलते गए

खूबसूरत रुत न थी औ रहगुज़र
तीरगी की बाढ़ को छलते गए

खूब रोका कंटकों नें राह में
राह में हम फूल सा खिलते गए

कह रहीं थीं आँधियाँ रुक जा जरा
आँधियों सा राह में चलते गए

झूठ आया रूप धर के सामने
गांधियों के रूप में ढ़लते गए

देख सुन कह मत गलत बुनते रहे
वानरों के पेट भी पलते गए

या खुदा तूने न देखा कारवाँ
चाँदनी ले हाथ में चलते गए

पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 779

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on September 30, 2013 at 10:56am

सुन्दर सशक्त तेवरदार ग़ज़ल , बधाई आदरणीया !!

Comment by Poonam Shukla on September 30, 2013 at 10:46am
कृपया सुधार के बाद ग़ज़ल फिर से देखें ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 11:04am

आ० पूनम जी 

बिना काफिया के रचना ग़ज़ल की श्रेणी में नहीं रखी जा सकती. ग़ज़ल की बातें, ग़ज़ल की कक्षा आदि से ग़ज़ल पर विस्तृत पाठ पड़ें जा सकते हैं .. 

शुभेच्छाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 10:50am

आदरनीया पूनम जी , आपके उदाहरण 

ख़्वाब था या ख़्याल था क्या था
हिज्र था या विसाल था क्या था  ------------  काफिया- आल है , न कि ,

आप जैसे ही पहले मै भी सझता था ! जब एक गज़ल खारिज़ हुई तो समझ मे बात आई !!

Comment by Poonam Shukla on September 23, 2013 at 10:47am
यानि की व्यंजन साम्य काफिया इस्तेमाल किया जा सकता है ।
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on September 23, 2013 at 10:41am

इस ग़ज़ल में काफ़िया है आल (ख़्याल, विसाल), न कि केवल ल !

Comment by Poonam Shukla on September 23, 2013 at 10:39am
दूसरा उदाहरण - मुस्ह़फी की गजल

ख़्वाब था या ख़्याल था क्या था
हिज्र था या विसाल था क्या था

मेरे पहलू में रात आकर वो
महा ँथा या हिलाल था क्या था
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on September 23, 2013 at 10:35am

इस ग़ज़ल में काफ़िया है अर (गुजर, सफ़र, जिगर, भर) | 

नियम से यह व्यंजन-साम्य काफ़िया हुआ  |

Comment by Poonam Shukla on September 23, 2013 at 10:30am
ऊषा यादव ऊषा की ग़ज़ल
रात तन्हा है रहगुज़र तन्हा
अब कटे कैसे ये सफर तन्हा

हिज्र का चाँद औ जिगर तन्हा
दिल तड़पता है रात भर तन्हा
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on September 23, 2013 at 10:24am

पूनम जी, ऐसी कुछ ग़ज़लों का उदहारण दीजिये ताकि बात साफ़ हो सके |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
15 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
21 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service