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नक्श ढूँढे वो मेरा हस्ती मिटाने के बाद

वज्न: 2122 1122 1122 22/112 

कोई याद अब करे है मुझको भुलाने के बाद

नक्श ढूँढे वो मेरा हस्ती मिटाने के बाद

हो गया गर्क़ सफीना मेरा इक तूफां में

चुप है अब मौजे-तलातुम यूँ डुबाने के बाद

लगती है बोली परस्तिश को अकीदत की यहाँ

अब यकीं लुटता है बाज़ार में आने के बाद

रोये क्यूं अपनी तबाही पे अब ऐ नादां तू

खुद मुदावे को गया जान से जाने के बाद

ऐ बशर अब न पशेमां हो नई सांस ले यूँ

इक नई शमअ-ए-उम्मीद जलाने के बाद

-मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 6:49pm

आदरणीय डॉ ललित सर आपका शुक्रिया

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 8, 2013 at 6:03pm

बड़ी खुबसूरत ग़ज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 1:37pm

आदरणीय बागी जी रचना के अनुमोदन के लिये आपका तहे-दिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 1:35pm

आदरणीया वंदना जी उत्साहवर्द्धक टिप्पणी के लिये आपका आभार व्यक्त करता हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 1:34pm

भाई जितेन्द्र जी उत्साहवर्द्धक टिप्पणी के लिये आपका आभार व्यक्त करता हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 1:31pm

आदरणीया मीना जी आपका तहे दिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 1:30pm

आदरणीय मोहन सर आपका तहे दिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 1:28pm

आदरणीया मंजरी जी आपका शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 1:26pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 1:26pm

भाई राम शिरोमणी जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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