For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा-लौटना

मन के कोने में कुछ विचार उथल-पुथल मचा रहे थे। कि मनुष्य को जब आगे कुछ दिखाई दे रहा हो तो वह आगे बढ कर उसे समेट लेने की सोचता है जबकि जिस जगह वह खडा होता है  वह वहां तक उसी रास्ते से आया है। जिस रास्ते को वह आगे देखते हुय़े भूल जाता है। सोचते-सोचते सागर अपनी यादों में खो जाता है और बिल्कुल अकेला हो जाता है वह याद करता है कि किस तरह उसकी प्रयेसी कुसुम उसके आफिस में उससे दुनिया से अलग हट कर प्यार करने की बातें करती थी। और प्यार जताती भी थी, जब उसका तबादला हो गया तो वह उसे बार-बार फोन करती,अपने प्यार की कसमें दिलाती की आप वापिस आ जाओ और अपना तबादला हर हाल में वापिस मेरे पास करवाओ। क्योंकि वह अपने पति के बच्चे की माँ बनने वाली थी और सागर ने उसके बच्चे को सही सलामत पैदा होने में मदद करने की उससे वादा किया हुआ था। कुसुम उसे अपने प्यार की क़समें देकर फिर से वापिस तबादले का ज़ोर दे रही थी। सागर ने कहा कि तबादले पर बीस हज़ार खर्च होंगे । कुसुम ने कहा क्या सागर मेरे लिये ये नहीं कर सकते और सागर ने निर्णय लिया कि मैं तेरे प्यार के लिये बहुत जल्द तबादला करवाऊँगा। और उसने एक महीने के समय में वापिस तबादला करवा लिया और फिर से पहले की तरह रोज उसे आफिस ले जाता और छोडता। और फिर समय आया कुसुम ने एक सुन्दर लडकी को जन्म दिया। और धीरे-धीरे कुसुम अपने परिवार में व्यस्त रहने लगी। और सागर को कुसुम से जिस बेपनाह महब्बत की उम्मीद थी वह धूमिल हो गई। वह गहरी तन्हाई में खो गया और कुसुम के लिये जो सोचता था अब उसमें बदलाव आने लगा वह सोचने लगा कि अगर मैं तबादला वापिस न करवाता तो शायद वहाँ पर मेरी जिन्दगी को नये आयाम मिलते। लेकिन  मैंने कुसुम के लिये वापिस लौटना अधिक उचित समझा। और महब्बत के लिये जिन्दगी लौटा दी।

                                                                                                               

यह रचना मौलिक व अप्रकाशित है

सूबे सिंह सुजान

Views: 528

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 1:41am

मुझे यह कथा थोड़ी अस्पष्ट लगी, भाई सूजान सिंह जी

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 29, 2013 at 9:45pm

विजय मिश्र,जी मुझे कोई दिक्कत नहीं है।  आप का स्वागत है।  मुझे आपका प्यार मिला है.. इस तरह की टंकण अशुद्दियाँ कंई बार मुझसे भी हो जाती हैं.............

Comment by विजय मिश्र on August 29, 2013 at 9:53am
अरे रे रे रे !!! यकीन मानिए सुजान भाई ,मैंने 'सुजान' ही लिखा था परSSS मेरे software ने मुझे धोका दे दिया ,मेरे दिल ने मुझे धोका नहीं दिया | हाँ , एक बुरी आदत है मुझमें , मैं एक रौ में लिखता हूँ और फिर मुड़कर देखता नहीं |कल ही किसी ब्लॉग पर मैंने Re-edit की सुबिधा की याचना कियी है . भूलवश हुए अनादर केलिए क्षमा करेंगे और सराहना केलिए आत्मीयता . नमस्कार ,शुभदिन सुजान भाई !
Comment by सूबे सिंह सुजान on August 28, 2013 at 10:02pm
विजय मिश्र, जी मेरा नाम सुजान है
Comment by सूबे सिंह सुजान on August 28, 2013 at 10:01pm
विजय मिश्र,जी आपकी विषयगत विचारों को जानकर सुखद लगा..........आपकी विस्तृत व सार्थक प्रतिक्रिया से प्रेरणा मिलती है...आपका दिल से धन्यवाद
Comment by विजय मिश्र on August 28, 2013 at 11:34am
सूजन भाई ! क्षणों में स्थिति परिवर्तन होता है और इक पल का सच हर पल का सच नहीं होता है ,शायद झूठ बन जाता है . हम सामंजस्यी हैं क्योंकि मनुष्य हैं ,पशु बिसंगतियों से समझौता नहीं करता फिर हमारी स्मृति का भी इक स्वभाव है यह समयानुकूल चिंतन करता है और मनोनुकूल को ही पसंद करता है .सुंदर लिखा आपने ,बधाई .
Comment by सूबे सिंह सुजान on August 27, 2013 at 8:39pm

सभी लघुकथा पढने वाले मित्रों का धन्यवाद

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 27, 2013 at 8:37pm

अरून शर्मा अनन्त,  जी आपका स्वागत है आपका धन्यवाद.....लेकिन ये कंटक क्या है.....कंही आप टंकण तो नही कह रहे हैं............हाँ महब्बत  मैंने जानबूझ कर लिखा है...क्योंकि सही शब्द यही है

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 27, 2013 at 3:51pm

आदरणीय सूबे भाई लघुकथा पर आपका प्रयास सुन्दर है कंटक त्रुटियों पर ध्यान दें. खैर इस लघुकथा पर मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service