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//गज़ल// सार रेशमी डोरी में- कल्पना रामानी

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छिपा हुआ रक्षाबंधन का, सार रेशमी डोरी में।

गुंथा हुआ भाई बहना का, प्यार रेशमी डोरी में।

 

कहीं बसे बेटी लेकिन, हर साल मायके आ जाती,

सजी धजी लेकर सारा, अधिकार रेशमी डोरी में।

 

बड़ा सबल होता यह रिश्ता, स्वस्थ भाव, बंधन पावन,

गहन विचारों का होता, आधार रेशमी डोरी में।

 

विदा बहन होती जब कोई, एक वायदा ले जाती,

जुड़े रहेंगे मन के सारे, तार रेशमी डोरी में।

 

विनय यही हों दृढ़ जीवन में, ये सदैव रिश्ते नाते,

रहे चमकता सतरंगी, संसार रेशमी डोरी में।  

 

 मौलिक व अप्रकाशित

 

कल्पना रामानी

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Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 1:49pm

कल्पना जी, हार्दिक बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए।

विजय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 1:43pm

विदा बहन होती जब कोई, एक वायदा ले जाती,

जुड़े रहेंगे मन के सारे, तार रेशमी डोरी में।///////////

वाह आदरणीया बहुत ही अनुपम रचना //हार्दिक बधाई आपको

Comment by Sulabh Agnihotri on August 20, 2013 at 12:35pm

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति कल्पना रामानी जी ।
एक-एक शेर लाजवाब। खास बात कि यह हिन्दी ग़ज़ल है।

Comment by वेदिका on August 20, 2013 at 12:15pm

पूरी गजल भाई बहन के अटूट बंधन को समर्पित है,, एक एक शेअर से रक्षा बंधन की पवित्रता और इस बंधन की मजबूती का अहसास हो रहा है! बहुत खूब गजल कही आपने आदरणीया कल्पना जी! 

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