For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहे ( प्रथम प्रयास )

दोहे ( प्रथम प्रयास ) 

दर दर भटके पूजता, तू महंत फकीर ।

चरण छुये माँ-बाप के, बनती है तकदीर ॥ 1 ॥

प्यासे को पानी मिले, भूखा जाये जीम ।

ऐसे घर मे लक्ष्मी, कृपा करे आसीम ॥ 2 ॥

जर जोरु दोनो मिले, बिछ्डे पुन मिल जाँए ।

जग छोड माँ-बाप गये, फिर वापस न आँए ॥ 3॥

छ्प्पन भोग तेरे धरे, देव प्रसन्न न होए ।

जब घर पे माता पिता, भूखे बैठे होए ॥4॥

बाल रुप धर तीन देव, करते अमृतपान ।          

बलिहारी माँ-बाप की, देव करे गुणगान ॥5 ॥

महंत कहे बसन्त कहे, बात ये तु भी मान ।

धरती पे माँ-बाप मे, होते है भगवान ॥6 ॥  

दर दर भटके माँ-बाप, और तु महल बनाए ।

जिस भवन माँ-बाप नही, घर वो ना कहलाए ।। 7 ॥ 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत नेमा on July 31, 2013 at 1:12pm

आ0 जितेन्द्र जी .. दोहे आप को पसन्द आये उसके लिये बहुत बहुत शुक्रिया आभार .... धन्यवाद 

Comment by बसंत नेमा on July 31, 2013 at 1:11pm

आ0 अनिल जी...  आभार शुक्रिया ... 

Comment by Anil chaudhary "sameer" on July 31, 2013 at 12:32pm

बहुत बढि़या, आदरणीय बसंत जी,
माॅ-बाप के लिये लिखे दोहे और उनमें दिया हुआ संदेश वाकई काबिले तारीफ है।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 31, 2013 at 11:29am

आदरणीय बसंत जी, बहुत ही सुन्दर शब्दों से पिरोई , दोहों की माला पर, हार्दिक बधाई

Comment by बसंत नेमा on July 31, 2013 at 10:14am

आदरणीया प्राची जी , सादर वन्दन  ...क्षमा बोल कर मुझे शर्मिन्दा न करे ।मुझसे इसकी खुशी है की  आप का समय मिला  और मेरी कमियो को आप ने इंगित किया ... ... जो कमिया रह गई है उनको अगले प्रयास मे पूरा करने की कोशिश करुंगा ...आप  गुणीजनो का अशीष मिलता रहे ...इसी आशा के  साथ .... आप का बहुत बहुत आभार धन्यवाद .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 31, 2013 at 9:47am

आ० बसन्त नेमा जी 

सबसे पहले तो आपकी दोहावली तक विलम्ब से पहुँचने के लिए क्षमा चाहूंगी...

अब दोहा के शिल्प में जहाँ कमियाँ रह गयी हैं उनको इंगित करती हूँ..

दर दर भटके पूजता, तू महंत फकीर ।............सम चरण में मात्रा १० ही रह गयी है , कथ्य भी अस्पष्ट है 

चरण छुये माँ-बाप के, बनती है तकदीर ॥ 1 ॥

प्यासे को पानी मिले, भूखा जाये जीम ।

ऐसे घर मे लक्ष्मी, कृपा करे आसीम ॥ 2 ॥...............असीम को आसीम लिखना गलत है 

जर जोरु दोनो मिले, बिछ्डे पुन मिल जाँए ।..........जाएँ , आएँ.... को २२ गिना जाएगा २१ नहीं 

जग छोड माँ-बाप गये, फिर वापस न आँए ॥ 3॥

छ्प्पन भोग तेरे धरे, देव प्रसन्न न होए ।......विषम चरण की मात्रा १४ हो रही है, और सम चरणों का अंत २२ से 

जब घर पे माता पिता, भूखे बैठे होए ॥4॥

बाल रुप धर तीन देव, करते अमृतपान ।.........रूप को रुप लिखा जाना गलत है.  और विषम चरण का नत १२ या १११ से होना चाहिये ...आपने यहां २१ से किया है         

बलिहारी माँ-बाप की, देव करे गुणगान ॥5 ॥

महंत कहे बसन्त कहे, बात ये तु भी मान ।.....दोहा विधा में विषम चरण का आरम्भ कभी जगण (१२१) से नहीं होता ..विषम चरण की मात्रा १४ हो रही है..................सम चरण में तू को तु किया जाना भी सही नहीं है 

धरती पे माँ-बाप मे, होते है भगवान ॥6 ॥  

दर दर भटके माँ-बाप, और तु महल बनाए ।...........सम व विषम चरणों के अंत विधानुरूप नहीं हैं 

जिस भवन माँ-बाप नही, घर वो ना कहलाए ।। 7 ॥ 

दोहावली पर सद्प्रयास के लिए हार्दिक बधाई.

छंद व्इधान पर पुनः ध्यान दें और दोहे लिखने के बाद विधा अनुपालन को पुनः जानत कर संतुष्ट होते चलें ...दोहे स्वतः ही सधते जायेंगे 

शुभकामनाएँ 

Comment by बसंत नेमा on July 27, 2013 at 10:40am

आ0 विजय जी तहे दिल से शुक्रिया आप का ..आप  ने दोहो को अपनासमय  दिया ....धन्यवाद 

Comment by बसंत नेमा on July 27, 2013 at 10:39am

आ0 राम जी और मै आप से सहमत हू ..... बहुत बहुत शुक्रिया .....

Comment by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 9:09pm

आदरणीय लक्ष्मन सर से सहमत हूँ //सादर 

Comment by विजय मिश्र on July 26, 2013 at 12:43pm
रचना का सार तो संसार से सुन्दर है ,सकल समाज को हितासाध्य सन्देश दिया है आपने.अतिसुन्दर बसंतजी ,बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
21 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service