For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुंद चाकू पर धार लगाकर

हम चाकू से छीन लेते हैं उसके हिस्से का लोहा

और लोहे का एक सीदा सादा टुकड़ा

हथियार बन जाता है

 

जमीन से पत्थर उठाकर

हम छीन लेते हैं पत्थर के हिस्से की जमीन

और इस तरह पत्थर का एक भोला भाला टुकड़ा

हथियार बन जाता है

 

लकड़ी का एक निर्दोष टुकड़ा

हथियार तब बनता है जब उसे छीला जाता है

और इस तरह छीन ली जाती है उसके हिस्से की लकड़ी

 

बारूद हथियार तब बनता है

जब उसे किसी कड़ी वस्तु में कस कर लपेटा जाता है

और इस तरह छीन ली जाती है उसके हिस्से की हवा

 

पर दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार

इन तरीकों से नहीं बनता

वो बनता है उस पदार्थ को और न्यूट्रॉन देने से

जिसके पास पहले से ही मौजूद न्यूट्रॉनों को

रखने हेतु जगह कम पड़ रही है

 

हजारों वर्षों से धरती पर मौजूद हैं छोटे हथियार

इसलिए मुझे यकीन है

दुनिया जब भी खत्म होगी

कम से कम छोटे हथियारों से तो नहीं होगी

------------------

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

Views: 652

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 25, 2013 at 7:32pm

बहुत बहुत धन्यवाद गीतिका 'वेदिका' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 25, 2013 at 7:32pm

बहुत बहुत धन्यवाद Savitri Rathore जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 25, 2013 at 7:31pm

बहुत बहुत शुक्रिया aman kumar जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 25, 2013 at 7:31pm

धन्यवाद  Shyam Narain Verma जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 25, 2013 at 7:31pm

शुक्रिया Jitendra Pastariya जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 25, 2013 at 7:30pm

बहुत बहुत धन्यवाद D P Mathur साहब

Comment by वेदिका on June 24, 2013 at 8:13pm

कविता के सभी बंद चौकाने वाले है … वह अद्भुत खोज करी आपने 

सच में एक निर्दोष को विस्फोटक बनाने में यह समाज ही जिम्मे वार है.  

किसी भी मुआअम्ले के सापेक्ष लीजिये। जब कोई लड़की या औरत घरेलू हिंसा को सहेगी तो उसे कोई श्रेय नही दिया जाता, लेकिन जब वह विस्फोटक हो जाती है तो उसे समाज के लिए घातक हथियार मान लिया जाता है। 

बधाई !!!  

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2013 at 7:20pm

छोटे-छोटे हथियारों से बड़े हथियारों तक की बात और उन हथियारों के कारण भविष्य के प्रति दूरदर्शिता ........निसंदेह सराहनीय प्रयास .....बधाई!

Comment by aman kumar on June 24, 2013 at 3:43pm

हथियारो को मानव ने बनाया और मानव ही मारा जाता है ! 

पर कविता को आपने जो हथियार बनाया ................. दुनिया को समझ आये तो ,,,

आभार !

Comment by Shyam Narain Verma on June 22, 2013 at 12:52pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service