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चाँद बादल में छुपा [नज़्म]

चाँद बादल में छुपा,  परछाइयाँ भी खो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर , तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

चुप्पियों की बाढ़ आयी , सारे मेले बह गये ।
महफ़िलों की गोद में भी , हम अकेले रह गये ।

खामोश मेरे हाल पर , खामोशियाँ भी हो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर , तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

अब तो कोई दर्द कोई गम भी बाकी ना रहा ।
मेरी इस आवारगी का , कोई साथी ना रहा ।

चैन तो ना मिल सका बेचैनियाँ भी खो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

क्या करेंगे हम किसी से, कोई रिश्ता जोड़कर ।
लो अँधेरे में गया ,साया भी हमको छोड़कर ।

आँखों में जो छायी रहीं, रंगीनियाँ भी खो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर, तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

नीरज

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Comment

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Comment by Neeraj Nishchal on May 24, 2013 at 3:15pm

आभार आरणीय अशोक जी 

Comment by Neeraj Nishchal on May 24, 2013 at 3:14pm

आभार शशि जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 24, 2013 at 8:12am

क्या करेंगे हम किसी से, कोई रिश्ता जोड़कर ।
लो अँधेरे में गया ,साया भी हमको छोड़कर ।..........वाह बहुत खूब 

सुन्दर नज्म सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी.

Comment by shashi purwar on May 22, 2013 at 1:20pm

waah bahut khoob

Comment by Neeraj Nishchal on May 21, 2013 at 12:44pm
राजेश कुमारी जी बहुत बहुत आभार
Comment by Neeraj Nishchal on May 21, 2013 at 12:43pm
बहुत बहुत धन्यवाद बृजेश जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 21, 2013 at 11:58am

क्या करेंगे हम किसी से, कोई रिश्ता जोड़कर ।
लो अँधेरे में गया ,साया भी हमको छोड़कर ।----वाह दिल को छू गई पंक्तियाँ ,आदरणीय सौरभ जी की बात पर गौर फरमाएं आपका ये हुनर और चमक उठेगा शुभाशीष 

Comment by बृजेश नीरज on May 21, 2013 at 9:51am

इस सुंदर नज्म के लिए आपको बधाई! नज्म क्या होती है इस पर आपसे मार्गदर्शन चाहूंगा।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 21, 2013 at 7:39am

आ0 नीरज भाई जी, सुप्रभात! अतिसुन्दर, वाजिब भाव ही है। ’चुप्पियों की बाढ़ आयी, सारे मेले बह गये ।
महफ़िलों की गोद में भी, हम अकेले रह गये।’ भाई जी! सौरभ सर जी के कहे का सदा ध्यान रखें आपका भविष्य उज्जवल हो। इसी शुभकानाओं के साथ हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by Neeraj Nishchal on May 21, 2013 at 1:12am

Thanks And Gratitude Shalini ji

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