For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भूल जाऊंगी तुझे.....

एक बीते वक़्त सा

कुछ भूल जाना अच्छा होगा

जिसके दामन में दुःख के सिवा

मन को भिगोते

गलतफहमियो के घने बादल,

शिकायतों की बिजलियां

गरजते - गडगडाते काले

शक के भरे बरसने को

बेकाबू सवालों के मेघ

और कुछ डरावनी रातें होंगी;

भूल जाना कुछ कड़वे शब्द

उनकी तपिश आँखों को

और कभी जो दिल को

जलाती रही ओस से भीगी,

ठंडी रातों में भी और

दर्द देती रही मेरे शांत पड़े

कानो को जो अकसर,

दर्द से कराह जाते हैं

तड़प जाते है इतने कि मैं बस

अपने कानो पर हाथ रख लूँ और

जोर से चिल्लाऊं

चुप हो जाओ - चुप हो जाओ;

दिन, दिन से रात और

रात से न जाने कितनी रातें और

कितने दिन-रात समय को कोसा

खुद को कोसा,

भूल जा ये कह कर आंसू पोछे

उसको सोचा खुद को सोचा,

अपनी परछाईयों को टटोला

अपने निशान देखे लेकिन

कुछ न मिला

बस तन्हाई मिली - चुप्पी मिली;

मैं तो थी ही कोरी साफ़ चंचल मन की

न छल जानूं - न चाल

मैं बहते पानी सी निर्मल पावन,

अपने मन के  दीये  से सबको

एक ही उजाले से रोशन कर

देखा करती थी;

फिर मैं क्यूँ सोचूं तुझको

मुझ संग कोई नहीं है मेल;

तू सफ़र में छूटा बेकार सा पुराना बस्ता

क्यूँ तुझको याद करू मैं

क्यूँ समय बरबाद करू मैं

भूल जाऊं तुझे कुछ बिगड़ी बात समझ के;

नहीं तू मंजिल किसी की

जो हो भी नही सकती राह किसी की

भूल जाऊंगी तुझे - अब मैं भूल जाऊंगी.....

Views: 889

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2013 at 11:16am

तू सफ़र में छूटा बेकार सा पुराना बस्ता

क्यूँ तुझको याद करू मैं

प्रियंका जी 

सादर बधाई 

सुन्दर भाव की रचना हेतु. 

Comment by manoj shukla on May 6, 2013 at 11:00am
बहुत सुन्दर भाव आदर्णीया....बधाई स्वीकार करें
Comment by coontee mukerji on May 6, 2013 at 10:49am

गलतफहमियो के घने बादल,

शिकायतों की बिजलियां

गरजते - गडगडाते काले

शक के भरे बरसने को

बेकाबू सवालों के मेघ............शक केंसर से भी भयंकर बीमारी है .....जिसने भी अपने रिश्ते  पर शक किया रूसवाई के सिवा उसे कुछ  न मिला. .....

मैं तो थी ही कोरी साफ़ चंचल मन की

न छल जानूं - न चाल

मैं बहते पानी सी निर्मल पावन,

अपने मन के  दीये  से सबको

एक ही उजाले से रोशन कर

देखा करती थी.............अक्सर निश्छ्ल मन वाले ही शक के घेरे में आते  हैं .....यह दुनिया का दस्तूर बन गया है .

भूल जाऊं तुझे कुछ बिगड़ी बात समझ के;

नहीं तू मंजिल किसी की

जो हो भी नही सकती राह किसी की

भूल जाऊंगी तुझे - अब मैं भूल जाऊंगी........जीवन बहुत सुंदर है और बहुत कम पल भी है इसीलिये कुछ कड़वी बातें भूल जाना ही अच्छा है . हृदय  की पीड़ा को आपने बहुत मामिर्क ढंग से व्यक्त किया है . आदर्णिया /सादर / कुंती.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 6, 2013 at 9:28am

आ0 प्रियंका जी,
"भूल जाऊं तुझे कुछ बिगड़ी बात समझ के,
नहीं तू मंजिल किसी की
जो हो भी नही सकती राह किसी की
भूल जाऊंगी तुझे . अब मैं भूल जाऊंगी"......सकारात्मक सुन्दर भाव। ढेरों शुभकामनाएं और बधाईयां। सादर,

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 6, 2013 at 9:04am

जी ऐसी नफरत से तो गम दूर करने को भूल जाने का निर्णय ही उचित है, ऐसी सोच के साथ लिखी सुंदर रचना के लिए बधाई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 6, 2013 at 8:50am

किसी से नफ़रत की इन्तहा पर रची सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रियंका सिंह जी.

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 6, 2013 at 7:46am

काफी समय बाद एक बेहतरीन संजीदा रचना पढ़ने को मिली.....और ये उपमा तो गजब है......

तू सफ़र में छूटा बेकार सा पुराना बस्ता

क्यूँ तुझको याद करू मैं.........

लख-लख बधाइयाँ......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service