For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


ये साँझ सपाट सही
ज्यादा अपनी है

तुम जैसी नहीं

इसने तो फिर भी छुआ है.. .
भावहीन पड़े जल को तरंगित किया है..  
बार-बार जिन्दा रखा है
सिन्दूरी आभा के गर्वीले मान को

कितने निर्लिप्त कितने विलग कितने न-जाने-से..तुम !

किसने कहा मुट्ठियाँ कुछ जीती नहीं ?
लगातार रीतते जाने के अहसास को
इतनी शिद्दत से भला और कौन जीता है !
तुमने थामा.. ठीक
खोला भी ? .. कभी ?
मैं मुट्ठी होती रही लगातार
गुमती हुई खुद में...  

कठोर !


********************

-सौरभ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1164

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विवेक मिश्र on August 18, 2013 at 10:48pm

/ये साँझ सपाट सही 
ज्यादा अपनी है/

/किसने कहा मुट्ठियाँ कुछ जीती नहीं ?/

/मैं मुट्ठी होती रही लगातार 
गुमती हुई खुद में.../

इन बहुआयामी पंक्तियों को कहने वाला कोई साधारण कवि नहीं हो सकता. कहने को तो यह केवल पंक्तियाँ भर हैं, पर इन पंक्तियों में छिपे हुए भावों को जीना सहज नहीं. 'कठोर!' प्रयुक्त तो उलाहने की तरह हुआ है, पर दूसरे दृष्टिकोण से यह 'मैं' पर भी सही फिट होता है. सच में अद्भुत है यह कविता.
फिर से कहता हूँ कि नज्मों में कमाल की मंज़र-निगारी के लिए मैं 'गुलज़ार' का फैन हूँ. पर हिन्दी कविताओं के 'गुलज़ार' तो आप ही हैं.. न किसी के लिए सही तो कम से कम, मेरे लिए.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 12, 2013 at 4:48pm

आदरणीया सीमाजी, आदरणीय जवाहर भाई और आदरणीया नूतनजी, आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा इस हेतु हृदय से धन्यवाद.

परस्पर सहयोग बना रहे.

सादर

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on June 5, 2013 at 1:29pm

वाह सौरभ जी! 

मैं मुट्ठी होती रही लगातार 
गुमती हुई खुद में...  

कठोर !

  अद्भुत ... उम्दा 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 12, 2013 at 5:53am

किसने कहा मुट्ठियाँ कुछ जीती नहीं ?
लगातार रीतते जाने के अहसास को 
इतनी शिद्दत से भला और कौन जीता है !
तुमने थामा.. ठीक
खोला भी ? .. कभी ? 
मैं मुट्ठी होती रही लगातार 
गुमती हुई खुद में...  

कठोर !

आदरणीय  महोदय, सादर अभिवादन!

बिलकुल अलग सा भाव ! सादर ... 

Comment by seema agrawal on May 9, 2013 at 9:08pm

ये साँझ सपाट सही
ज्यादा अपनी है........सीधी साफ़ बात पर मन के किसी भीगे कोने से बरसती हुयी 

तुम जैसी नहीं

इसने तो फिर भी छुआ है.. .
भावहीन पड़े जल को तरंगित किया है........... तटस्थता विरोध से कही अधिक सालती है मौन शब्द से अधिक टीसता है 

बार-बार जिन्दा रखा है
सिन्दूरी आभा के गर्वीले मान को

कितने निर्लिप्त कितने विलग कितने न-जाने-से.. . तुम !.......कितने जाने पहचाने फिर भी ना जाने से 'ऐसा क्यों' के अनुत्तरित ...............................................................................प्रश्न को जीते रहना बहुत कठिन होता है 

किसने कहा मुट्ठियाँ कुछ जीती नहीं ?
लगातार रीतते जाने के अहसास को.................थामने का एहसास एक बार पर रीतने की छटपटाहट सालोंसाल, लगातार 

इतनी शिद्दत से भला और कौन जीता है !

तुमने थामा.. ठीक
खोला भी ? .. कभी ?
मैं मुट्ठी होती रही लगातार
गुमती हुई खुद में.......................................मैं मुट्ठी होती रही लगातार //गुमती हुई खुद में.......अंतराग्नि को स्वयं ही पीते रहना और सौम्य बने रहना  फिर धीरे धीरे एक दिन स्वयं से ही बिछुड़ जाना ..बहुत कष्टप्रद अहसास ..........

अन्दर तक किसी रिक्तता को ढोती हुयी शांत गति से एक उलाहने के साथ कठोर ! संपन्न होती इस रचना को  सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं है इसे महसूस भी किया जा सकता है 

जय हो सौरभ जी आपकी इस सशक्त रचना के लिए 
.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 8, 2013 at 11:08pm

आदरणीय अनवर सुहैल साहब, आप जैसा सुरुचिपूर्ण रचनाओं का रचनाकार जब किसी अन्य की रचना के विषय में सकारात्मक बोलता है तो यह उस रचना की मात्र वाहवाही नहीं होती.

आपका सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 8, 2013 at 11:06pm

भाई राजेश झाजी, आपने अपने तथ्यों को स्पष्टता से साझा किया है.

वस्तुतः किसी रचना का पाठक को समझ में न आना रचनाकार के दोष के रूप में ही जाना जाता है. इसी तथ्य के अनुरूप हमने सोचा था. आपको रचना पसंद आयी यह मेरे लिए परम संतोष की बात है.

सहयोग बना रहे.

Comment by anwar suhail on May 8, 2013 at 7:33pm

भावनाओं और संवेदनाओं का ज्वार-भाटा....अच्छी कविता है, बधाई

Comment by राजेश 'मृदु' on May 1, 2013 at 1:57pm

//भाई राजेशजी आपने संप्रेषण की कमियाँ बतायीं//

आदरणीय, आपकी इस टिप्‍पणी पर अचरज में पड़ गया । संप्रेषणीयता का प्रश्‍न तो वहां उठता है जब यह प्रश्‍न आपके समतुल्‍य या आपसे कद में ऊंचे व्‍यक्ति उठाएं । मैं तो आपके आस-पास भी नहीं हूं , अत:यहां संप्रेषणीयता का प्रश्‍न तो उठता ही नहीं है । मैं बिना समझे वाह-वाह तो नहीं कर सकता और अगर कोई चीज मेरी समझ से परे है तो मैं कैसे कह दूं हां मुझे सब समझ में आ गया । आपके प्रति मेरा आदर भाव गुरू-शिष्‍य परंपरा में आबद्ध है जहां गुरू को प्रश्‍न अपने शंका समाधान हेतु किया जाता है, अपने ज्ञान को विस्‍तार देने के लिए किया जाता है और मैं इसीका पृष्‍ठपोषक हूं, आशा करता हूं आप मेरी भावनाएं समझ गए होंगे । आपके स्‍नेह का अभिलाषी हूं, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 29, 2013 at 7:13pm

आदरणीया उषा तनेजाजी, आपको रचना पसंद आयी, इस हेतु सादर धन्यवाद.

सहयोग बना रहे

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service