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मत्तगयंद सवैया(एक प्रयास )

दूर करैं सब कष्ट महा प्रभु ,जाप करो शिव शंकर नामा ! 

जो नर ध्यान धरै नित शंकर ,ते नर पावत शंकर धामा !!

ध्यान लगाय भजो नित शंकर ,लालच मोह सबै तजि कामा !

जो भ्रमता भव बंधन में तब,पावत ना वह जीव विरामा !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 421

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on March 18, 2013 at 8:24pm

आदरणीय सौरभ सर ,गणेश सर, बड़े भाई राज जी ,आदरणीया प्राची मैम,रविकर सर ,राजेश भाई ,योगी जी ......
आप सभी को हार्दिक आभार....................

Comment by Yogi Saraswat on March 13, 2013 at 2:23pm

बहुत सुन्दर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 13, 2013 at 11:18am

मत्तगयन्द सवैया पर सुन्दर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई राम शिरोमणि जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 12, 2013 at 11:41pm

मत्तगयंद पर बढिया प्रयास हुआ है.. अभ्यासरत रहें.

शुभेच्छाएँ

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 12, 2013 at 9:14pm

बड़ा ही सुंदर प्रयास है,,,,,,बधाई आपको,,,,,,,,,,,,,

Comment by राजेश 'मृदु' on March 12, 2013 at 5:21pm

बड़ा ही सुंदर प्रयास है, भोले शिवशंकर सदप्रयास को जरूर उँचाई देंगें


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 12, 2013 at 4:38pm

प्रिय शिरोमणि जी, सवैया पर आपका प्रयास काबिले तारीफ़ है, अंतिम पक्ति में "ना" का प्रयोग किये हैं , गुरु जन कहते हैं कि "ना" की जगह न, नहीं,  नहि आदि का प्रयोग करना उचित होता है ।

बधाई इस प्रस्तुति पर ।  

Comment by रविकर on March 12, 2013 at 4:24pm

बढ़िया सवैया छंद-
शुभकामनायें-आदरणीय-

कृपया ध्यान दे...

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