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निदान

                                    गांव के बाहर मन्दिर में जोर-जोर से शंख और घड़ियाल बज रहे थे। एक सप्ताह से वहां पूजन चल रहा था। अब आरती हो रही थी। पण्डित जी ने आश्वस्त किया था कि नदी के कगार टूटने से गांव पर जो बाढ़ का खतरा मंडरा रहा था वह इस पूजन से टल जाएगा।

                                    गांव वालों के पास भी कोई रास्ता नहीं था पण्डितजी की बात मानने के सिवा। जिस बात की गारण्टी सरकार नहीं दे सकती उसकी गारण्टी यदि पण्डित दे रहा हो तो बात मानने में क्या बुराई। कगार की मरम्मत करने की मेहनत से तो यह जिम्मेदारी भगवान पर छोड़ना अच्छा। उसी ने समस्या दी है तो निदान भी वही करेगा।

                                                                                                      - बृजेश नीरज

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 21, 2013 at 10:21am

"जिस ने चौंच दी है, चुग्गा भी देगा" जैसी बात सोंच कर, आस्था रख कर्म न करने की बात हुई 

लोग अपने मन की बात से ज्यादा पंडित की बात माने को मजबूर हो जाते है । 

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