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ये शब्द समर्पित  उन भावनाओं को,

जो अव्यक्त रह गयी.

उस रुपहले संसार को,

जो ख्वाब बनकर रह गया.

ये शब्द समर्पित उस रिश्ते को,

जो बेनाम रह गया.

उस अनकही   भाषा को,

जो मौन बनकर रह गयी.

यह अर्पण उस सादगी को,

जो आस बनकर रह गयी.

यह अर्पण उन लम्हों को,

जो साथ रहकर जी लिए.

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2013 at 7:44am

बढिया प्रयास हुआ है, भाई. आपकी अन्य रचनाओं की भी प्रतीक्षा रहेगी.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 7:33pm

सुन्दर ..

Comment by राजेश 'मृदु' on February 5, 2013 at 6:39pm

सुंदर अभिव्‍यक्ति, आपके समर्पण में हमारा भी समर्पण मिला लें, साथ रहें, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 5, 2013 at 11:45am
"ये शब्द" कौनसे है जिन्हे आप समर्पित या अर्पित करना चाहते है ?
रचना के भाव अच्छे है, उसके लिए बधाई राजेश भरद्वाज जी 

कृपया ध्यान दे...

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