धरती अम्बर से कहे ,सुना प्रेम के गीत
अम्बर धरती से कहे, दिवस गए वो बीत
दिवस गए वो बीत ,मुझे कुछ दे न दिखाई
कोलाहल के बीच,तुझे देगा न सुनाई
जन करनी के दंड, अभागिन प्रकृति भरती
किस विध मिलना होय ,तरसते अम्बर धरती
*******************************************
Comment
आपके कोमल खूबसूरत विचार भाव जब छंद का सधा आवरण पहन निस्सृत होते हैं तो मन मुग्ध हो जाता है.
धरा अम्बर प्रेम को तरसते....बहुत सुन्दर कुण्डलिया. ह्रदय से बधाई आदरणीया राजेश जी
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आपकी इस प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को संबल मिला और आपने जो त्रुटी पकड़ी जो बिलकुल सही पकड़ी है उसके लिए आभारी हूँ उसे अभी सही कर लेती हूँ
आदरणीया राजेशजी, आपकी इस रचना की संवेदनशीलता मुग्धकारी है. बिम्ब और कथ्य दोनों संतुलन में हैं. आपके रचना-कर्म में हुए सकारात्मक परिवर्तन को यह मंच गर्व से स्वीकारता है. सादर बधाई.
एक बात :
कोलाहल के बीच,तुझे न देगा सुनाई = कोलाहल के बीच, तुझे देगा न सुनाई
हार्दिक आभार अखिलेश जी
अति सुंदर ।मैडम बधाई स्वीकारें ।
बहुत बहुत आभार शालिनी जी कुण्डलिया के मर्म का अनुमोदन करने हेतु
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online