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२१२ २१२

मैं जहाँ भी रहूँ,
तू भी आती है क्यूँ।

मैं अकेला कहाँ,
तेरी यादों में हूँ।

ठोकरें भी लगें,
तो भी चलता रहूँ।

मेरी बर्बादियाँ,
चल रही दू ब दूँ।

कत्ले अरमाँ या जाँ,
बोल दे क्या करूँ।

जिस्म ठंडा हुआ,
रूह जलती है क्यूँ।

है तेरी याद में,
दीद में खूँ ही खूँ।

ज़ख़्मी सारा जिगर,
दर्द कैसे सहूँ।

आशियाना नहीं,
बेठिकाना फिरूँ।

यार भी छल गये,
तो किसे क्या कहूँ।

बेबसी बेखुदी,
बेकली में जियूँ।

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on November 22, 2012 at 3:50am

हेमशा की तरह ...
....सुन्दर
बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 21, 2012 at 7:21pm
दर्दे तन्हाई पढ़ते पढ़ते 
खो गया दिल मेरा 
अपने ही जक्मो को 
कुरेदते कुरेदते ।
फिर चुप हो गया 
आखिर मै भी 
किस से कहूँ ।
अच्छी रचना के लिए बधाई 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 21, 2012 at 1:01pm

वाह ! .. बढिया.  दाद कुबूल कीजिये.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 21, 2012 at 12:54pm

बहुत सुन्दर छोटी बहर  पर दर्द भरी ग़ज़ल सीधे दिल तक पँहुच गई दाद कबूल करें इमरान जी 

जिस्म ठंडा हुआ,
रूह जलती है' क्यूँ।

फिर ते'री याद में,
दीद में खूँ ही' खूँ।-----एक चुप सी लगी है !!!बस क्या कहूँ 

Comment by नादिर ख़ान on November 21, 2012 at 12:30pm

जिस्म ठंडा हुआ,
रूह जलती है' क्यूँ।

यार भी छल गये,
अब किसे क्या' कहूँ।

कम शब्दों मे लंबी बात बहुत खूब ।

Comment by इमरान खान on November 21, 2012 at 10:08am
डॉ. सूर्या बाली "सूरज"

शुक्रगुज़ार हूँ मैं आपकी नवाज़िशों का
Comment by इमरान खान on November 21, 2012 at 10:06am
शुक्रिया डाक्टर प्राची साहिबा
Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 21, 2012 at 9:51am

वाह इमरान भाई बहुत उम्दा ग़ज़ल....छोटी बहर में बात कहना आसान नहीं होता लेकिन आपने बाखूबी निभाया है। दाद कुबूल करें !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 21, 2012 at 9:51am

बहुत सुन्दर दर्द भरी ग़ज़ल।

कृपया ध्यान दे...

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