For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला,”
कर लिया यह कर्म जिस ने उस को ही ईश्वर मिला.
कांच   की  कारीगरी  में  जो   निपुण  थे  साथियों,
आजकल उन के ही  हाथों  में   हमें   पत्थर  मिला.
पेट भर  रोटी  मिली   जब   भूखे  बच्चों को  हुज़ूर,
सब कठिन प्रश्नों का उन को इक सरल उत्तर मिला.
चापलूसी  की   कला  में  जो  है  जितना  ही चतुर,
जग में उस को उतना ही सम्मान और आदर मिला.
यह पुरातन सत्य  है  कि  वानर की हैं संतान हम,
आज  मानव रूप में भी हम को  वही  बन्दर मिला.
प्रेम  का  आश्रम   सजाने  के   लिए आ श्रम  करें,
ऐसे  कर्मों  का जगत में फल भी सदा सुन्दर मिला.
एक प्यारी सी  ग़ज़ल बन ही  गयी  इस पँक्ति  से ,
बहर  भी   है  ख़ूबसूरत   क़ाफ़िया  सुन्दर  मिला.
मन  में रामायण सा ही वो बस गया है  ऐ ‘लतीफ़’   
यूं  सतत् पावन  पठन का  उम्र  भर अवसर मिला.

©अब्दुल लतीफ़ ख़ान (दल्ली राजहरा).

Views: 778

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 16, 2012 at 9:41am

प्रेम  का  आश्रम   सजाने  के   लिए आ श्रम  करें,
ऐसे  कर्मों  का जगत में फल भी सदा सुन्दर मिला.
एक प्यारी सी  ग़ज़ल बन ही  गयी  इस पँक्ति  से ,
बहर  भी   है  ख़ूबसूरत   क़ाफ़िया  सुन्दर  मिला.

 ठीक कहाँ अब्दुल लतीफ़ खान भाई आपने श्रम से सुंदर आश्रम भी मिल गया 
और खुबसूरत काफिया भी वाह क्या बात है ' बधाई 
Comment by satish mapatpuri on October 15, 2012 at 11:59pm

पेट भर  रोटी  मिली   जब   भूखे  बच्चों को  हुज़ूर,
सब कठिन प्रश्नों का उन को इक सरल उत्तर मिला.

यह पुरातन सत्य  है  कि  वानर की हैं संतान हम,
आज  मानव रूप में भी हम को  वही  बन्दर मिला.

सुभान अल्लाह ...... ग़ज़ल के हर शे ' र तारीफ़ के काबिल हैं . खुबसूरत ख़याल ..... दाद कुबूल फरमाएं लतीफ़ साहेब .

Comment by वीनस केसरी on October 15, 2012 at 11:29pm

वाह लतीफ़ खान साहिब
क्या बेहतरीन ग़ज़ल कही है
दिल से ढेरो दाद निकल रही है
वाह वाह वा

इस जमीं पर ही अभी कुछ दिन पहले सौ ग़ज़लें पढ़ने का सुख प्राप्त हुआ है आज १०१ हो गई :)))

Comment by ajay sharma on October 15, 2012 at 10:37pm

जग में उस को उतना ही सम्मान और आदर मिला.
यह पुरातन सत्य  है  कि  वानर की हैं संतान हम,
आज  मानव रूप में हम को  ,  वही  बन्दर मिला.
प्रेम  का  आश्रम   सजाने  के   लिए आ  श्रम  करें,
ऐसे  कर्मों  का जगत में फल सदा सुन्दर मिला.
एक प्यारी सी  ग़ज़ल बन ही  गयी  इस पँक्ति  से ,
बहर  भी   है  ख़ूबसूरत   क़ाफ़िया  सुन्दर  मिला.  bahut sunder 
मन  में रामायण सा ही वो बस गया है  ऐ ‘लतीफ़’   
यूं  सतत् पावन  पठन का  उम्र  भर अवसर मिला. qabil e daad hain 

nice sharing 

Comment by ajay sharma on October 15, 2012 at 10:35pm

sir,,,,yadi gitika ki 9th pankti me """"yah puratan satya hai , vanar ki hai santaan ham

                                                     aaj manav roop me , humko vahi bandar mila ''' ho jaye to 
 zyada achcha laga ....................tathapi ,,,,rachana nihsandeh bahut achhi hai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service