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ग़ज़ल:काम बेशक न कीजिये

काम बेशक न कीजिए ज्यादा,
मीडिया में मगर दिखिए ज्यादा.

ये सियासत के खेल है साहब ,
बोइये कम छीटिए ज्यादा.

मिल गया है रिमांड पर अभियुक्त
पूछिए कम पीटिए ज्यादा.

सैलरी झाग दूध रिश्वत है,
फूंकिए कम पीजिए ज्यादा.

शेख जी हैं नए नए शायर ,
दाद कुछ और दीजिए ज्यादा.

लिफ्ट छाते में देकर देख लिया ,
बचिए कम भीगिए ज्यादा.

सभ्यता की पतंग और पछुआ बयार,
ढीलिए कम लपेटिए ज्यादा.

अपसंस्कृति की पपड़ियाँ उभरीं,
घर की दीवार लीपिए ज्यादा.

आप एम्.पी. से बन गए मंत्री,
गनर दो चार रखिये ज्यादा.

पांच वर्षों का गेम है सारा,
बांटिये कम फेंटिए ज्यादा.

कितनी मंथर गति तरक्की की,
दौडिए कम रेंगिए ज्यादा.

डोली महंगाई की रहेगी यहीं ,
रोइए कम भेंटिए ज्यादा.

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 20, 2010 at 7:38am
Bahut khoob Arun bhai
Comment by आशीष यादव on October 20, 2010 at 12:17am
khubsurat, bilkul sahi
Comment by Priti Kumari on October 19, 2010 at 9:16pm
लाजवाब अति सुन्दर! संच्चायी का प्रतिबिम्ब...

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