For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

=====नज्म=====

तुम्हारी भीगी पलकें
याद हैं मुझे
भीगी पलकें
झरने सी छलकीं
पिरो न पाया था
एक मोती भी
और मेरे समन्दर-ए-दिल में
बाढ़ आ गयी

उठती मौजें
डुबोये देती थी
इश्क की खूबसूरत इमारत
ये लम्हा-ए-फुरकत था
या रोज-ए-महशर
शायद
वही था रूह कांप रही थी
जिस्म ठंडा सा
बेजान
बर्फाब सा

आँखें गर्म आब से
भरी भरी डबडबाई
याद है या
कोई जुस्तजू लिए
गुमराह सा सफ़र

वो नाजुक से लम्स
जिनमे नजाकत थी
कपास के फोहों सी
वो लम्स जो जगा देते थे
सोये हर एहसास को
रूह में उतार लेते थे
पल भर में
वो लम्स देर तक लबों पे
सुलगा देते थे
कपकपाती सर्द हवाओं को
अब वो यादों में
जगा देते हैं सारी रात
चुभते हैं खारों से

सदायें वो
सुनो न
जी उठती तमन्ना
एक बार फिर
बार बार जीने की
ग़ज़ल थी
या नज्म रूहानी सी
वो सदायें
जिसे सुन कर
जिन्दगी जन्नत हो जाती
और जन्नत
जन्नत तुम
अब तरसते हैं कान
सुनने वो सदा
मजबूर कर देते हैं
लिखने को वो हर्फ़
जो उड़ते हैं
सफाहों के इर्द गिर्द
पकडूँ वो तितली
जिनमे भरे हैं तुम्हारे रंग
रूकती ही नहीं
उड़ जाती है
खुशबू के जैसे

एहसासों की तपिश से
नर्म सी जर्ब से
तराशा था
मैंने पिघलते संग को
बनाया था सनम
लेकिन न पिघला सका
कोहे-मजबूरियों को
खड़े रहे वो
पत्थर से बंजर कोह
टूट गया
टकरा टकरा के
छूट गया साथ
तुम्हारा हमारा
पर याद रही
साए सी
हमेशा तकिये के गीलेपन में
बिस्तर में सलवटें लिए
करवटें बदलती
तुम्हारी खुशबू के साथ

संदीप पटेल "दीप"

Views: 312

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 28, 2012 at 6:02pm

आदरणीय झा साहब सादर नमन
आपको नज्म के भाव भा गए
मेरा लिखना सफल हुआ
बहुत बहुत शुक्रिया आपका सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर 

Comment by राजेश 'मृदु' on September 28, 2012 at 12:53pm

अद्भुत भाव हैं इस रचना के, बहुत-बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
16 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service