For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छले गए जो अपनों से ......

जगते ही जिनको भोर मिली 
संघर्ष निशा का क्या जाने 
जो रहे समर से दूर 
मर्म इक बलिदानी का क्या जाने ...............

पर्वो में सिमट गयी यादे 
बलिदान शहीदों के सारे 
हो गए कैद किताबो में 
भारत माता के रखवारे 
जिस देश की खातिर खून दिया , वो देश नहीं अब पहचाने 
....जो रहे समर से दूर मर्म ...............

औरो की खातिर मर जाना 
जिनको केवल इक खेल लगे 
उनके ही त्याग समर्पण का 
कितना सस्ता अब मोल लगे 
जो पत्थर दिल है मालिक वो दिल की जुबानी क्या जाने 
जो समर से दूर मर्म ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Views: 388

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Yogi Saraswat on September 25, 2012 at 10:57am

पर्वो में सिमट गयी यादे 
बलिदान शहीदों के सारे 
हो गए कैद किताबो में 
भारत माता के रखवारे 
जिस देश की खातिर खून दिया , वो देश नहीं अब पहचाने 
....जो रहे समर से दूर मर्म ..............

ati sundar shabd aur utne hi khoobsurat bhaav sharma ji badhai

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2012 at 9:26am

बहुत सुन्दर भाव सर जी
इस सुन्दर संवेदनाओं से सजी रचना हेतु साधुवाद आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2012 at 9:24am

 भारत माता के वीर सपूतों के बलिदानों के प्रति संवेदन हीन  होती हुई इंसानियत हेतु  रोष प्रकट करती हुई इस रचना को नमन बहुत अच्छा लिखा है आपने ह्रदय से बधाई आपको  अजय शर्मा जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 12:44pm

आपकी इस रचना से निस्सृत राष्ट्र-पूतों की हो रही अवहेलना को हम एक पाठक के तौर पर भरपूर संवेदना के साथ स्वीकार कर पाये. इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, अजयजी.

Comment by Gul Sarika Thakur on September 24, 2012 at 12:13pm

औरो की खातिर मर जाना 
जिनको केवल इक खेल लगे 
उनके ही त्याग समर्पण का 
कितना सस्ता अब मोल लगे 

bahut sundar rachna ..bahut sundar bhaw abhiyakti badhai .. 

 

Comment by seema agrawal on September 24, 2012 at 10:30am

जगते ही जिनको भोर मिली 
संघर्ष निशा का क्या जाने 
जो रहे समर से दूर 
मर्म इक बलिदानी का क्या जाने ...........सच कहा अजय जी 

बहुत सुन्दर सम्प्रेषण .....बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 24, 2012 at 10:01am
आजादी के बाद अब बलिदानी का मर्म जानने वाले उंगलियों पर गिने जा सकते है |

गहरी सोंच में डूब गया, भाई अजय शर्मा बात दिल को झकझोर जो गयी- 

जिन कंटीली पगडंडियों से मै गुजरा 
खुली हवा में पलने वाले-
मेरे बच्चे उन पगडंडियों को क्या जाने, यह सोच को मजबूर हो गया, बधाई 
Comment by mohinichordia on September 24, 2012 at 5:28am

 छले गये जो अपनों से ....जो रहे समर से दूर ..बहुत मार्मिक रचना ...बधाई अजयशर्मा

जी 

Comment by UMASHANKER MISHRA on September 23, 2012 at 11:24pm

प्रिय अजय जी बहुत ही उम्दा रचना है 

मेरे हाथों के रोएँ खड़े हो गये 

जगते ही जिनको भोर मिली 
संघर्ष निशा का क्या जाने 
जो रहे समर से दूर 
मर्म इक बलिदानी का क्या जाने ...............

बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service