मान और सम्मान की,नहीं कलम को भूख
महक मिटे ना पुष्प की , चाहे जाये सूख |
खानपान जीवित रखे , अधर रचाये पान
जहाँ डूब कान्हा मिले , ढूँढो वह रस खान |
दीपक पलभर जल बुझे, नित्य जले आदित्य
सकल जगत जगमग करे,कालजयी साहित्य |
अलंकार रस छंद के , बिना कहाँ रस-धार
बिन प्रवाह कविता नहीं गीत बिना गुंजार |
अक्षर - अक्षर चुन सदा, शब्द गठरिया बाँध
राह दिखाये व्याकरण , भाव लकुठिया काँध |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)
Comment
भाव गहन मन में हुए, फूटी रस की धार
अरुण लिये संभावना, आया जग के द्वार.. .
खानपान जीवित रखे , अधर रचाये पान
जहाँ डूब कान्हा मिले , ढूँढो वह रस खान |
दीपक पलभर जल बुझे, नित्य जले आदित्य
सकल जगत जगमग करे,कालजयी साहित्य |
बहुत ही सुंदर दोहे रचे .. आदरणीय निगम सर .. बधाई स्वीकार करें
ek mera doha padho ji
MAN KE SANG JO NACHTE, ANT JAT PACHHTAT
MAST MAJON KE CHAKKAR MAI,KASIKAIN MUH KI KHAT
bahut majedar dohe hain ji par abhi kabir vali bat nahi hai ji
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