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फुलेनवा ,
आज मेरा मन द्वन्द में भटक रहा था ,
करे या ना करे इसी पे अटक रहा था ,
कारन फुलेनवा के घर में था ,
और सामने पानी और मिठाई पड़ा था ,
आज कोल्कता में मैं हु ये भी हैं ,
आज से पैतीस साल पहले की घटना ,
मेरे मानस पटल में चमक रहा था ,
फुलेना खेतो में हल चलते थे ,
और हम भी बाबु जी के साथ ,
उन्हें खाना खिलने जाते थे ,
उनके साथ बैठ कर मैं खाने लगता ,
और ओ कहते बाबु हम अछुत हैं ,
मैं हसता और बस खाया करता ,
और आज उनके ही हाथ के पानी ,
मुझे द्वन्द में डाल रखा हैं ,
तभी मेरे कान में आवाज आई ,
भूल हो गई बाबु अब बाबु नहीं हैं ,
चालीश के हो गए हैं ,
बेटा गलास हटा दो ,
बाबा जी के यहा से पानी ला दो ,
तभी मेरी तन्द्रा भंग हुई ,
और देखते देखते मिठाई और पानी ख़त्म हुईं ,
और मैं सोचने लगा बच्चा ही अच्छा था ,

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