For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीवान में 

बटोर कर रखा 

बरसों पुराना सामान 

कुछ चीज़ें मात्र नहीं होता....

उसमे तो कैद होते हैं 

ज़िंदगी के वो खूबसूरत पन्ने 

जो हमें उस रूप में ढालते हैं

जो आज हम हैं....

हमारी पूरी ज़िंदगी

समेटे होती हैं

वो कुछ

गिनी चुनी निशानियाँ....

कुछ गुड्डे- गुडिया

जिनकी आँखों में

आज भी मुस्कुराता है हमारा बचपन....

कुछ फूलों की 

सूखी पंखुड़ियां 

जो आज भी दोस्ती बन महकती  हैं जहन में....

कुछ सदभावना सन्देश

जो दुआएं हैं अपनों की

ईश्वर के साए की तरह....

कुछ पीले पड़ चुके पन्ने

जो समेटे हैं

मोहब्बत की खूबसूरती....

कुछ तोहफे

जो बेशकीमती धरोहर हैं....

और भी बहुत कुछ,                                                                           

शायद सभी कुछ है

दीवान के अन्दर....

कहाँ बदला है वक़्त ?

वक़्त तो ठहरा हुआ है

आज भी हर एहसास को

उतनी ही ताजगी से सम्हाले.....

कहाँ बदलता  है स्थान ?

बदलते तो हम हैं

अपने ही रास्ते

फूलों की डगर से काँटों की ओर.....

सचमुच

बदलते तो हम हैं

अपने ही 'स्व' के 'अभिमान' से....

पर

समेट लेते हैं

ज़िंदगी की ख़ूबसूरती को

कुछ तहें बना कर

दीवान के अन्दर

और

बड़ते जाते हैं अकेले....

...... जाने क्यों ?

Views: 357

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rekha Joshi on July 17, 2012 at 3:45pm

आदरणीय प्राची जी

पर

समेट लेते हैं

ज़िंदगी की ख़ूबसूरती को

कुछ तहें बना कर

दीवान के अन्दर

और

बड़ते जाते हैं अकेले..अति सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 16, 2012 at 9:36am

सचमुच सही कहाँ है आपने आदर. डॉ. प्राची जी-

बदलते तो हम हैं,अपने ही 'स्व' के 'अभिमान' से....

पर,समेट लेते हैंज़िंदगी की ख़ूबसूरती को | बहुत अच्छी रचना बधाई 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 15, 2012 at 9:34pm

वो कुछ

गिनी चुनी निशानियाँ....

कुछ गुड्डे- गुडिया

जिनकी आँखों में

आज भी मुस्कुराता है हमारा बचपन....

कुछ फूलों की 

सूखी पंखुड़ियां 

जो आज भी दोस्ती बन महकती  हैं जहन में.

डॉ प्राची जी ..बहुत खूब कहा आपने सटीक और सत्य बहुत काम आता है ये हमारे जीवन में 

जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 15, 2012 at 6:03pm

वाह बहुत ही खूबसूरती से बयाँ किया है आपने...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
2 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service