For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ताज महल 

----------------

चंचल हिरनी मृग नयनी 

मदमस्त अदा गृह सजनी
करती श्रृंगार सौ बीमार 
उसका मेरा असीम प्यार
नयनों में अनजानी  आस 
जाने क्यों रहती अब  उदास
पूछो लाख खामोश रहती है
दिल ही दिल में क्या कहती है 
जानता हूँ  उदासी का सबब 
बंधन प्रेम न कोई मजहब 
रानी दिल की दिल राज महल 
चाहत उसकी न हो ताज महल
जीवन आना जाना व्यवहार है  
सर पर एक छत की दरकार है 
सुन्दर सा घर छोटा सा आँगन 
गूंजे  किलकारियां भीगा दामन 
चाहत मेरी ताज महल बनवाऊं 
अपनी मुमताज के सपने सजाऊँ 
कमर तोड़ महंगाई  का आलम 
जानो सब  फिर चुप क्यों जानम 
सूझत  न  उपाय किस दर जाऊं 
शाहजहाँ जैसा जिगरा  कहाँ से लाऊं 
शायद कोई शाहजहाँ फिर आएगा 
अपनी मुमताज के लिए 
ताज महल बनवायेगा 
 

Views: 617

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 4:47pm

धन्यवाद . आदरणीय भ्रमर जी, सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 4:47pm

धन्यवाद आदरणीया रेखा जी, सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 4:46pm

आदरणीय अम्बरीश जी, सादर. 

मेहनत सफल लग रही है. आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 4:44pm

स्नेही संदीप द्वेदी जी, सादर 

प्रोत्साहित हुआ. आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 4:43pm

धन्यवाद, आदरणीय अलबेला जी, सादर आपकी चाहत का. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 4:42pm

धन्यवाद  आदरणीय संदीप जी, प्रोत्साहन हेतु , सादर 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 7, 2012 at 2:40pm

सुन्दर सा घर छोटा सा आँगन 

गूंजे  किलकारियां भीगा दामन 
चाहत मेरी ताज महल बनवाऊं 
अपनी मुमताज के सपने सजाऊँ 
आदरणीय कुशवाहा जी सुन्दर रचना ...दुआ है ये सारे सपने आप के सच हों मन मगन हो ताजमहल यादें दिलाता खड़ा रहे मंहगाई अन्ना जी ले जाएँ 

भ्रमर ५ 
Comment by Rekha Joshi on July 14, 2012 at 7:22pm
सूझत  न  उपाय किस दर जाऊं 
शाहजहाँ जैसा जिगरा  कहाँ से लाऊं 
शायद कोई शाहजहाँ फिर आएगा 
अपनी मुमताज के लिए 
ताज महल बनवायेगा 
Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 14, 2012 at 6:41pm

आदरणीय कुशवाहा जी......सुंदर भावनाओं से ओतप्रोत आपके इन अभिनव विचारों को नमन .....वस्तुतः ताज महल बनाना तो शाहजहाँ के बस में भी नहीं था .......उसके लिए तो साक्षात् शिवजी की कृपा ही चाहिए .....सादर ...

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 14, 2012 at 6:19pm

आदरणीय प्रदीप जी,

ताजमहल भले न बने मगर भावनाएँ सब कुछ स्पष्ट कर देती हैं| आपको लख-लख बधाईयां इस सुन्दर सृजन हेतु|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service