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मिल कर तुमसे न फिर देर तलक होश आया
जैसा सोचा था, उस से कहीं बढ़कर तुम्हें पाया
 
उस मोड़ से आप तो कर गए 'खुदा-हाफ़िज़' लेकिन
चलता रहा देर तलक साथ मेरे आपका साया
 
तेरे हाथों की खुशबु हो जाये क़ैद मुठ्ठी में
यही सोच, किसी शै को देर तक न मैं छू पाया
 
दिल तो हो रहा था, आपके अंदाज़े-बयाँ का कायल
जाने क्या सुना मैंने, जाने क्या आपने फ़रमाया
 
माना की ज़िंदगी का सफ़र है, अजब सा एक सफ़र
ये करम है उसका, हमसफ़र आपसा जो मैंने पाया      
 

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Comment by Rekha Joshi on June 29, 2012 at 1:08pm

आदरणीय अजय जी ,

माना की ज़िंदगी का सफ़र है, अजब सा एक सफ़र
ये करम है उसका, हमसफ़र आपसा जो मैंने पाया ,अच्छा हमसफर हो तो जिंदगी का सफर भी अच्छा ही कटता है ,बढ़िया रचना ,बधाई  

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