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ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 
जीवन है रेत सा तो   क्या घरोंदे तो बना लूं 
फैला समुन्दर दूर तलक दूर तलक आकाश 
छाया अँधेरा घना बहुत जाने कब हो प्रकाश
बीत न जाये ये सुन्दर लम्हे सपने तो सजा लूं 
ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 
 

दौड़ती हुई तट पे इतनी दूर  निकल आयी 

भागती जिसके पीछे जीवन नहीं  है  परछायीं
जीवन  है क्या खेल तुझे इसके हाल सुना लूं 
ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 
सर्द गरम ठोस नरम का  तुझे न है अभी अहसास
रंग बिरंगे  मुखोटे ओढ़े कई जन आयेंगे तेरे पास 
क्या सही है क्या गलत का आ तुझे ज्ञान करा लूं 
ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 

लंबी है डगर जीवन की  कांटो भरे हैं रास्ते 

पग पग पे कहीं लगे न ठोकर चलना तुम आस्ते 

चुन लूंगा  मैं ये कांटे सारे तेरा जीवन संवार लूं 

ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं  

 

हँसता रहे बचपन तेरा लग जाए मेरी  दुआ 

मासूम सी कली है तू  गर्म थपेडों ने है  छुआ 

शीतल पवन का झोंका दे तुझे जी भर निहार लूं 

ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं   

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Comment by UMASHANKER MISHRA on June 17, 2012 at 9:00pm

आदरणीय अति सुन्दर लयबद्ध रचना है 

ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 
बढ़िया है सर जी       

 

 
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 17, 2012 at 8:10pm
आदरणीय सर, आपकी कविताओँ मेँ आपका विशाल अनुभव झलकता है। बधाई।

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