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कविताओं में बाँचिये , शीतल मंद समीर
शब्दों में ही बह रहा , निर्मल निर्झर नीर
निर्मल निर्झर नीर,हरा वसुधा का आँचल
चंदन जैसी मृदा , गगन इतराता बादल
अमृत-सी जलधार कहाँ अब सरिताओं में
खोया पर्यावरण , ढूँढिये कविताओं में |

 

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 6, 2012 at 12:40pm
बहुत सुन्दर कुण्डलिया लिखी है आपने अरुण निगम जी.
पर्यावरण के प्रति इस संवेदना व इस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
Comment by Albela Khatri on June 6, 2012 at 10:37am

वाह वाह अरुण कुमार निगम जी, पर्यावरण के विनाश की  पीड़ा को आपने बहुत ख़ूब व्यक्त किया
अमृत-सी जलधार कहाँ अब सरिताओं में
खोया पर्यावरण , ढूँढिये कविताओं में |

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