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अग्नि प्रज्वलित हुई धरा पर
परिवर्तन एक गढ़ने को
चला काफिला जनतंत्री का
अब नव चिंतन करने को
नकली रूपया नकली वस्तु
खेल हो रहा ठगने को
महंगाई है खून चूसती
बढ़ रही पिसाचिन मरने को
आ रहे विदेशी ठगने अपने
अर्थ तंत्र को चरने को
भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ने को
बनो पतंगा जलने को
वेग हमारा तूफानों का
खड़े युद्ध हम करने को
कर्मवीर बन बढ़े चलो अब
आग नहीं अब बुझने को
प्रश्न खड़ा जीवन मृत्यु का
आर-पार कुछ करने को
लायेंगे बदलाव नया अब
संकल्प ह्रदय में धरने को
परोपकारिता हो गंगा जैसी
जन जन मन में बहने को

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 30, 2012 at 10:19am

"परोपकारिता हो गंगा जैसी जन जन मन में बहने को"बहु खूब लिखा है भाई श्री उमाशंकर मिश्राजी, समय की पुकार को 

आपने बखूबी लिखा है अब शीघ्र परिवर्तन की आवशकता है और इसके लिए जरूरी है " बनो पतंगा जलने को" - लक्ष्मण प्रसद लडीवाला
Comment by राज़ नवादवी on June 30, 2012 at 12:36am

कर्मवीर बन बढ़े चलो अब
आग नहीं अब बुझने को
प्रश्न खड़ा जीवन मृत्यु का
आर-पार कुछ करने को

बहुत खूब लिखा है, जोश से भर देनेवाली पंक्तियाँ हैं! 

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 6, 2012 at 11:26pm

आदरणीय सौरभ जी आपका प्रोत्साहन 

हमारे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं है 

आपका आभार ...लिखते तो हमें वर्षों हो गए 

परन्तु पहाड के नीचे अब आये हैं 

यहाँ ज्ञानी जनों के बीच बहुत कुछ जानने और सीखने को मिल रहा है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 5, 2012 at 10:48pm

आपकी प्रस्तुत कविता समाज के वर्तमान ऊहापोह को इंगित करती प्रतीत है. आपकी उपस्थिति बनी रहे, शुभेच्छाएँ.

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 5, 2012 at 9:48pm

प्रिय अलबेला जी

आपकी दाद हमारी लिखने...... की  "खाज" को बनाये हुवे है

धन्यवाद  आपका शुक्रिया

आशीष जी धन्यवाद आपकी बधाई के लिए..

Comment by आशीष यादव on June 5, 2012 at 8:35am

बेहतरीन, भावपूर्ण रचना। बधाई स्वीकारिये

Comment by Albela Khatri on June 4, 2012 at 10:34pm

waah waah umashankar mishra ji.............aag bhar di hai aapne shabdon me

abhinandan !

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 4, 2012 at 9:43pm

महिमा जी धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 9:28pm

अग्नि प्रज्वलित हुई धरा पर
परिवर्तन एक गढ़ने को
चला काफिला जनतंत्री का
अब नव चिंतन करने को

आदरणीय उमाशंकर  जी ..
बहुत कुछ उच्च कोटि के विचार .. बधाई आपको
Comment by UMASHANKER MISHRA on June 4, 2012 at 9:13pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी धन्यवाद आपका

रेखा जी शुक्रिया

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