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साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं

बे-अदब आबाद होते जा रहे हैं
इल्म है बरबाद होते जा रहे हैं

देख कर गम इस जमाने का कहें क्या
सब दिले-नाशाद होते जा रहे हैं

गम हमारे देख अपनों को न गम हो
इसलिए हम शाद होते जा रहे हैं

चोर ही जाबित यहाँ पग पग लुटेरे
नाम के आज़ाद होते जा रहे हैं

मुल्क को जो लूट अपनी जेब भरते
अब वही हमदाद होते जा रहे हैं

बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं

शारदा ने करम जिस जिस पे किया है
"दीप" वो उस्ताद होते जा रहें हैं

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by वीनस केसरी on June 5, 2012 at 3:06pm
बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो

भाई संदीप पटेल जी "बे बह्र" का वज्न २२१ होता है इसलिए यह मिसरा बह्र से ख़ारिज है

इस मिसरे को इस तरह या इससे बेहतर कर सकते हैं -

बह्र से ख़ारिज ग़ज़ल कह कर सुखनवर
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं


करम का वज्न १२ होगा न् कि कर्म के अनुसार २१ क्योकि फिर अर्थ बदल जायेगा
इसलिए इस मिसरे पर भी पुनः गौर करें व् सुधारें ...

शारदा ने करम जिस जिस पे किया है
Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 10:24pm

बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं

शारदा ने करम जिस जिस पे किया है
"दीप" वो उस्ताद होते जा रहें हैं

बहुत बढ़िया संदीप जी .. बधाई आपको

Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 8:52pm

वाह संदीप कुमार पटेल जी,
बहुत अच्छा  लगा

बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं

____तीर मार रहे हो.............. जय हो

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 3, 2012 at 7:36pm

उर्दू के शब्दों ने गजल में आभूषण का कार्य किया 

बस दीप जलता रहे हम आरती लेते रहें..... 

अच्छी  गजल

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 3, 2012 at 7:21pm

शारदा ने करम जिस जिस पे किया है
"दीप" वो उस्ताद होते जा रहें हैं

कृपा बनी रहे. रचना पढ़ने को मिलती रहे. बधाई.

Comment by Rekha Joshi on June 3, 2012 at 5:59pm

Sandip ji 

मुल्क को जो लूट अपनी जेब भरते
अब वही हमदाद होते जा रहे हैं,badhiya rachna ,badhai 

Comment by chandan rai on June 3, 2012 at 3:44pm
मुल्क को जो लूट अपनी जेब भरते
अब वही हमदाद होते जा रहे हैं

वाह मित्र ! कमाल का ग़ज़ल लिखा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2012 at 12:17pm

बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं:))))

भई संदीप कुमार जी आप भी ग़ज़लों के उस्ताद होते जा रहे हैं 

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