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जीवन और मृत्यु
आत्मा परमात्मा
सत्य और असत्य
शाश्वत मूल्यों का सत्य
धूप और छाँव
साथ नहीं होती
गमछा संग धोती
बिना सीप मोती
बगैर दीप ज्योति
स्त्री स्त्री देख रोती
पोता हो या पोती
कैसे मिलता जीवन का
अनुपम सुन्दर उपहार
किसी घर में बेटी न होती

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Comment by Bishwajit yadav on June 1, 2012 at 10:24pm
गमछा संग धोती
बिना सीप मोती
बगैर दीप ज्योति
स्त्री स्त्री देख रोतीपोता हो या पोती
कैसे मिलता जीवन का
अनुपम सुन्दर उपहार
किसी घर में बेटी न होती

वाह वाह क्या बात है आपने शब्दो को बढिया ढंग से सजाया है
जय हो
Comment by Albela Khatri on June 1, 2012 at 8:17pm

प्रदीप कुमार सिंह  कुशवाहा जी,
बेटी  की महत्ता  पर  बहुत  अच्छी कविता कही आपने.........
आज सारी मानवता ये मानने लगी है  कि  बेटी अथवा स्त्री  इस सृष्टि में  कितनी सम्माननीय  और ज़रूरी हैं .
बधाई आपको इस  रचना के लिए........

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