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आत्मावलोकन के क्षणों में

मन मेरे

जब तू जूझता

डूबता , उतराता

फिर थक के बैठ 

किनारे सुस्ताता है

औ तब ये सब 

देख रही होती हैं 

मेरी आँखे 

सबसे परे

उन सारे पलों को

तुझे जीते हुए

औ तभी

विहँस पड़ती हैं

उसी क्षण 

जब उनमें से 

चुन लेता है तू

एक मोती    

18th May2012

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:56pm

अरुण जी .. कविता आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ .. आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:55pm

आदरणीय बागी जी .. कविता आपको अच्छी लगी .. अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद / साभार  

Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:53pm

नीलांश जी . कविता को पसंद करने के लिए आपका ह्रदय से शुक्रिया /आपको भी शुभकामनाये

Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:51pm

आदरणीय सौरभ सर .. रचना  पसंद करने और अनुमोदन  के लिए आभारी हूँ / स्नेह बनाये रखे /

Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:49pm

आदरणीय अशोक सर व् आदरणीया रेखा जी .. उत्साहवर्धन और सराहना के लिए आप सब का ह्रदय से आभारी हूँ

Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:47pm

आदरणीय डॉ सूरज  जी  .. कविता को पसंद करने , बहुमूल्य विचार देने  और सराहने के लिए ह्रदय से आभार ..सधन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:44pm

....हरी  ओउम  ...भ्रमर सर . आपकी सुंदर सरल विचार और प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ .

.स्नेह बनाये रखे धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:41pm

आदरणीय जवाहर सर .. आभारी हूँ धन्यवाद आपका

Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:40pm
मैं ये नहीं जनता 
ये छाया या रहस्य वाद है
इतना मैं जानू निर्विवाद है ..

बहुत खूब ,,आदरणीय प्रदीप सर .. आपकी टिपण्णी कभी  तो रचना पे भी भारी पड़ जाती है ...

 अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ .स्नेह बनाये रखे .. सधन्यवाद   

Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:36pm

आदरणीया राजेश दी व् आदरणीया सरिता दी .. कविता पसंद करने के लिए आभारी हूँ , हार्दिक धन्यवाद /

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